Skip to content

रक्षक

सचेत * सतर्क * समर्थ

  • ।।संदर्भ।।
  • आप का सुझाव
  • Rakshak App
  • पंजीकरण
  • ध्यान दे !
  • ।।आभार।।
  • Toggle search form

कौन हैं जागृत

Posted on May 20, 2017May 16, 2023 By admin No Comments on कौन हैं जागृत

चेतना से जीवन

संपूर्ण सृष्टि में उपस्थित प्रत्येक कण-कण को सजीव अथवा निर्जीव गुणधर्म के आधार पर दो प्रमुख भागों में आसानी से विभाजित किया जा सकता हैं। सजीव, जो किसी भी तरह की चेतना से युक्त हो तथा नीर्जीव, जो पूर्णतया चेतना विहीन हो। चेतना, जो की हर तरह से सजीव गुणधर्म के लिये पहली व अंतीम शर्त हैं। वनस्पतियों की चेतना उन्हें प्रकाश की दिशा में अग्रसर करती हैं तो प्राणीयों की चेतना विकट परिस्थितीयों में उनकी रक्षा करती हैं।

प्रत्येक सजीवों में चेतना व्याप्त हैं और जो सजीव हैं वह अपनी चेतना से सतर्क हैं। यह एक प्राकृतिक व्यवस्था हैं। जीस प्रकृति से हमें जीवन मिला वहीं प्रकृति हमें जो सबसे पहली शिक्षा देतीं हैं उसके अनुसार जो सजीव हैं उसका चेतना युक्त रहना जरूरी हैं तभी वह जीवीत व सुरक्षित रह सकता हैं। जो अपनी स्वयं की सुरक्षा के प्रती सचेत नहीं उसका जीवन निर्जीव होने के समान हो जाता हैं।

वृक्ष अपनी चेतना कारणवश प्रकाश कि दिशा में तथा उसकी जड़ें जल कि दिशा में बढ़ती हैं। पक्षी अपना घोंसला सुरक्षा कारण वश वृक्ष की शाखाओं या टीलों पर बनाते हैं, चीटीयाँ भी सुरक्षित रहने के लिये एक जुट हो कर रहती हैं और पशु भी अपनी-अपनी क्षमता अनुसार स्वयं की सुरक्षा को प्राथमिकता देते ही हैं।

जब वनस्पति से लेकर पशु-पक्षियों तक अपनी चेतना के सहारे स्वयं के पालन-पोषण हेतु सचेत रह सकते हैं तो हम मानव किस तरह प्राकृतिक के इस स्वभाव से स्वयं को परे रख सकते हैं। बल्कि मनुष्य प्रजाति इस धरती पर सर्वाधिक सचेत व सतर्क मानी जाती हैं जो ना केवल वर्तमान परिस्थितीयों के प्रती बल्कि भविष्य कि आपदाओं का आकलन भी करने में सक्षम हैं। मनुष्यों के लिये निरंतर बदलते परिवेश ने मनुष्यों से जुड़ी विकट परिस्थितीयों को भी निरंतर बदला हैं। आज मनुष्य के लिये प्राकृतिक आपदाओं से भी बड़ी चुनौती उनकी अपनी ही मानव प्रजाति बन चुकी हैं। आज विश्व कि मानव प्रजाति स्वयं दो भागों में बट चुकी हैं जहाँ एक तरफ मानवता को मानने व बचाने वाले खडे हैं तो दुसरी तरफ मानवता को मिटाने वाले, मनुष्यों को ही मनुष्यों का दुश्मन बनाने वाले हैं। एसी परिस्थितीयों से एक साधारण मनुष्य किस तरह स्वयं को सचेत कर व सतर्क रह सकता हैं इस विषय पर उसका निरंतर चिंतन आवश्यक हमेशा रहा हैं। प्रत्येक व्यक्ती को अपनी क्षमता अनुसार स्वयं, परिवार, समाज व अपने देश की सुरक्षा के प्रति सचेत रहने को प्राथमिकता स्वरूप स्वीकार करना ही होगा।

स्वयं की पहचान

स्वयं की सुरक्षा के लिये सर्वप्रथम स्वयं की पहचान जरूरी हैं। स्वयं की पहचान हमें हमारी क्षमता से परिचित करवाती हैं। हमें हमारे पूर्वजों के शौर्य और भुल दोनों को ही समझना जरूरी हैं। हमें हमारे स्थानीय-व-समाजिक इतिहास का ज्ञान हमारे विश्वास को चट्टानों की तरह मजबुत करता हैं। हम अगर अपने विश्वासों और उनसे जुड़ी मान्यताओं को जानने में सफल हो जाते हैं तो हम अपनी जड़ों से मजबुती से जुड़ सकते हैं। अपने विश्वासों से अटल और जड़ों से जुड़े व्यक्ति का मन पुरी तरह स्थिर और एकाग्र होता हैं। जहाँ जड़ों से जुड़े होने का प्रभाव व्यक्ति के मनोबल को सिधा असर कर उसे मजबूत बनाता हैं वहीं स्वयं के इतिहास का ज्ञान भविष्य में आने वाली विकट परिस्थितियों के लिये सचेत करता हैं।

वर्तमान पर नजर

हमें हमारी सुरक्षा के लिये हमेशा सचेत रहने की जरूरत हैं। हम तब तक सुरक्षित नहीं हैं जब तक हमारा समाज व देश सुरक्षित नहीं हो जाता। समाज व देश की सुरक्षा तभी संभव हो सकती हैं जब हम वर्तमान में हो रहीं घटित प्रत्येक घटनाओं पर नजर रखे। हमारे ईर्द-गिर्द होने वाली प्रत्येक हलचल का प्रभाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हम पर, समाज पर व देश पर पढ़ता हैं। इन्हे ना सिर्फ जानना बल्कि इनके कारणों को समझना भी आवश्यक हैं।

स्वयं की क्षमता

हमें निरंतर स्वयं की क्षमता का आकलन करना जरूरी हैं। प्रत्येक होने वाली घटनाओं का मंथन हमें स्वयं की क्षमता से परिचित करवाता हैं। अपनी क्षमताओं कि समझ हमें विषम परिस्थितियों से निपटने के लिये तैयार करती हैं।

जिम्मेदारियों का निर्वाह

मनुष्य का जीवन ही जिम्मेदारियों के निर्वाह के लिये हुवा हैं जिसमें हमें पशु-पक्षियों सहित प्रकृति की प्रत्येक रचनाओं की सुरक्षा के प्रति जिम्मेदारियां हमारा प्रथम कर्तव्य हैं। हम जब जन्म लेते हैं तो किसी के लिये ज़िम्मेदारी बन कर आते हैं। जैसे-जैसे समझदारी बढ़ती हैं हमारी जिम्मेदारियाँ भी बढ़ती हैं। हमें अपनी जिम्मेदारियों का अहसास ही हमें अपने परिवार, समाज व देश की सुरक्षा के प्रति प्रेरित कर सकता हैं।

मनुष्य जिवन निम्न तीन ऋणों से बंधा हुवा हैं और प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन काल में इन तीन ऋणों को उतारना ही चाहिए।

१) माता-पिता ऋण: हमारे वेद-पुराणोंं ने माता-पिता को भगवान का रूप बताया हैं। जिस तरह हम आत्मा को परमात्मा का हिस्सा मानते हैं उसी तरह आत्मा को यथार्थ स्वरूप प्रदान करने वाला शरीर माता-पिता की देन हैं। हमारे गुरूजनों ने भगवान से भी पहले माता-पिता कि पूजा का ज्ञान हमें दिया हैं। एक इंसान रूपी प्राणी के लिये इससे बड़ी गलती नहीं हो सकती की वो अपने माता-पिता कि उपेक्षा करे। हर मानव को प्राप्त शरीर उसे उसके माता-पिता का जन्म से हि ऋणी बना देता हैं। जिन माता-पिता नें हमें जन्म दिया उनकी अंत-काल तक सेवा कर हम यह ऋण उतार सकते हैं।

२) समाजिक ऋण: हमारे जिवन में पुर्व से चले आ रहे हमारे समाज की बड़ी भूमिका होती हैं जो कइ रूप से हमारे जिवन को एक दिशा प्रदान करता हैं। जहाँ हमारे समाज से हमें दुनियाँ में एक पहचान मिलती हैं वहीं समाज कि एक जुटता हमारे हितों की रक्षा करती हैं। हमारा यह निरंतर प्रयास होना चाहिये कि हमारे समाज को हम और सुदृण कैसे बनाये। समाज कि त्रुटियों को दुर कर व समाज के पुण्य कार्यो में योगदान कर हम समाज के ऋण से मुक्त हो सकते हैं। यह इसीलिये भी जरूरी हैं क्यूँ की जिस समाज की छत्रछाया हमें मिली वहीं त्रुटी-मुक्त छत्रछाया हमारी अगली पीढी को भी मिल सकें। यहाँ हमें एक और तथ्य को भी समझना बेहद जरूरी हैं। कइ लोग स्वयं के समाज को उँचा दिखाने के लिये अन्य समाज के प्रती नींदा पर उतर आते हैं। अपने समाज के उद्धार करते-करते हम देशहित को भुला बैठते हैं। हमें अपने समाज के शौर्य व बलिदान पर गर्व करने का पुरा हक हैं किंतु किसी अन्य समाज को नीचा दिखाने का कोई हक नहीं। जहाँ हमें अपने समाज-हित में प्रयास करने का पुरा अधिकार हैं वहीं मात्र स्वयं समाज हित के लिये देशहित को ताक पर लगाना हमारी बड़ी मूर्खता होगी। हम अपने समाज का गौरव मात्र तभी बढ़ा सकते हैं जब हम अपने समाज को उस स्थिती में पहुँचा सकें की जहाँ हमारा समाज अन्य समाज के लिये आदर्श बने। हमारा समाज प्रेम मात्र तब सफल हो सकता हैं जब हमारे समाज का हर कार्य देश की प्रगति में भागीदार बने ना की अवरोध पैदा करे।

३) मातृभूमि ऋण: यह ऋण सभी ऋणों से बड़ा व महत्वपूर्ण ऋण हैं और बगैर इसे उतारे हम अपने जीवन को कदापि सफल नहीं मान सकते। अपने मातृभूमि का संरक्षण से बढ़कर हमारे जीवन का कोई और लक्ष्य स्वंय के जीवन को व्यर्थ हीन दिशा की और ले जाता हैं। इसका कारण यह हैं की जिवन में भले ही हम अपार सफलता पा ले लेकिन वह मातृभूमि जिस पर हमने जन्म लीया अगर वही सुरक्षित ना हो तो हमारी सारी सफलता के फल पर कोई और अधिकार जमाकर बैठ सकता हैं। हम चाहे जितने भी लाड-प्यार अपनी अगली पीढी को तैयार कर ले, अगर मातृभूमि सुरक्षित नहीं तो हमारी पीढ़ियों को अन्याय-अत्याचार यहाँ तक की गुलामी का सामना भी करना पड सकता हैं। एसी स्थिती में हमारी सारी सफलता ना केवल व्यर्थ होगी बल्कि हमारे प्रियजनों के लिये अभिशाप बन कर उभर जाएगी।

यूँ तो इन तिनों ऋणों को उतारने के लिये कटिबद्ध होना जरूरी हैं किंतु मातृभूमि की सेवा में किया गया योगदान व बलिदान शेष सभी ऋणों से मुक्ति दिला सकता हैं। संभवतः देश पर मरमिटने वाले पूर्व क्रांतिकारियों को भी इस तथ्य का अहसास रहा होगा तभी उन्होंने देश के लिये परिवार-व-समाज का त्याग भी हँस कर सह लिया। वे यह जान गये थे कि देश जबतक गुलामी से मुक्त नहीं हो जाता, ना समाज का भला हो सकता हैं और ना ही परिवार का उद्धार।

सारांश: सजीव के लिये स्वयं कि सुरक्षा हेतु सचेत रहना प्रकृति द्वारा बनाया गया महत्वपूर्ण स्वभाव हैं। जागृती और सतर्कता से स्वयं, समाज व देश की सुरक्षा इंसान का प्रथम कर्तव्य हैं। हर इंसान किसी-न-किसी जड से जुड़ा हुवा होता हैं और हमें अपनी जड़ों की पहचान ही मजबुत बनातीं हैं यह ठिक उसी तरह हैं जीस तरह एक साधारण सा पौधा भी जड़ों के कारण मातृभूमि से जुड़ कर तन कर खडा हो जाता हैं। माता-पिता, समाज व देश की सेवा – सुरक्षा कर हम मानवीय जीवन के ऋणों से मुक्त हो सकते हैं जिसके बगैर किसी भी इंसानीय जीवन को सफल नहीं समझा जा सकता।

Rakshak Tags:conspiracy, conspiracy against india, Indian politics, Politics, politics and dharma, RakshakTheBook, wakeup india, जागो भारत, भारत के खिलाफ साजिश, भारतीय राजनीति, रक्षक किताब, राजनीति, राजनीति और धर्म, साजिश

Post navigation

Previous Post: धर्म के प्रति जागरूकता

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

  • कौन हैं जागृत
  • धर्म के प्रति जागरूकता
  • इतिहास से परिचित
  • समाज के प्रती सचेत
  • राष्ट्र के प्रती जागरूकता
Tweets by san4851

amusement park awakeness in society awareness in society being nationalist bollywood conspiracy bollywood conspiracy against india bollywood Indian politics boycott bollywood breaking india breaking india toolkit conspiracy conspiracy against india fun of politics gems of bollywood Indian politics know bollywood live nationalism love nation media conspiracy nationalism nationalist nature destroyer waterpark nature destroyes amusment park ngo role in breaking india paid media Politics politics and dharma presstitutes RakshakTheBook save democracy save nation social media social media impact toolkit to defame india vote for india wakeup india waterpark waterpark nonsens जागो भारत भारत के खिलाफ साजिश भारतीय राजनीति रक्षक किताब राजनीति राजनीति और धर्म साजिश

Copyright © 2025 रक्षक.

Powered by PressBook WordPress theme