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इतिहास से परिचित

Posted on May 20, 2017May 13, 2023 By admin No Comments on इतिहास से परिचित

इतिहास का महत्व

किसी भी देश की नीव उस देश के इतिहास ज्ञान पर खडी होती हैं। जहाँ भी लोगों को उनके इतिहास का ज्ञान होता हैं, वे अपने मातृभूमि से मजबुती से जुड़े रहते हैं। इतिहास का ज्ञान वृक्ष की जड़ों कि भाँती लोगों को उनकी धरा से बांधे रखता हैं। यह उसी प्रकार का रिश्ता होता हैं जिसमें एक पर-आश्रित वृद्ध भी अपने पुश्तैनी मकान को नहीं छोड पाता फिर भले ही उसे एकान्त जीवन क्यूँ ना झेलना पड जाये। एसा इसीलिये क्यूँ की उसे अपने पुरखो के इतिहास का ज्ञान होता हैं कि किन-किन परिस्थितीयों में वह मकान बना व उनके भी जीवन के कइ उतार-चढ़ाव का एक मात्र साक्षी वह मकान होता हैं।

इसी तरह इतिहास से हमें पता चलता हैं की हम आज जिस सुखः-सुविधाऔ का सुखः भोग रहे हैं उसके लिये हमारे पूर्वजों ने कितनी व किस-किस तरह के त्याग व बलिदानों को सहा। जब तक हमें इन बलिदानों का ज्ञान ना हो हमें हमारे सुख-विलास कि वास्तविक कीमत का कभी भी अंदाजा नहीं हो सकता और जब तक कीमत का अंदाजा ही ना हो तो हम जिम्मेदारियाँ कैसे निभा सकते हैं! जिम्मेदारी, अपनी आने वाली पीढी को सुरक्षित व सुख-सुविधाओं भरा एक सवतंत्र वातावरण देने की जिससे हम आज अपने पूर्वजों के बलिदान स्वरूप लाभांवित हुए हैं।

एतिहासिक ज्ञान जिसके जीवन का आधार बने उसका जीवन स्वाभिमान व आत्मविश्वास, से भरा होता हैं। इतिहास में घटित पुरखो के शौर्य जहाँ हमें धैर्यवान व आत्मविश्वासी बनाते हैं वहीं उनकी खामियां हमें भविष्य के निर्णयों में सचेत करती हैं। जिन्हे इतिहास का ज्ञान नहीं होता उनके कदम विपरीत परिस्थितीयों में जल्द ही डगमगा जाते हैं। इतिहास को भूलकर हम राष्ट्र को कितनी भी उन्नति तक भले ही पहुँचाले किंतु राष्ट्र को सुरक्षित नहीं रख सकते और बगैर सुरक्षित राष्ट्र के विकास कि ईमारत राष्ट्रविरोधी आंधी में तुरंत ढह जाएगी। इसीलिये यदि हमें स्वयं के साथ राष्ट्र को सुरक्षित करना हैं तो हमें हमारे वास्तविक इतिहास का ज्ञान होना बेहद आवश्यक हैं।

वास्तविक इतिहास

आज़ादी पुर्व के विदेशी शासकों ने हमारे एतिहासिक धरोहर व इतिहास को नष्ट करने में कोई कसर ना छोडी। यहाँ तक की आज़ादी पश्चात भी जो इतिहास हमें विद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं वह पूर्ण नहीं। पाठ्य पुस्तकों का इतिहास वास्तविकता का वह भाग हैं जिसे आज़ादी के बाद राजनीतिक लाभ के लिये पढ़ाया गया व जिसमें मात्र ‘अहिंसा’ स्वरूप पर पूर्ण जोर दिया गया। वह एक काल्पनिक तथ्य ही होगा यदि कोई यह मान बैठे की भारत को स्वतंत्रता मात्र शांतिपूर्ण विरोध व अहिंसाव्रत के जरीये ही मिली। विश्व में किसी भी देश को आज़ादी बगैर बलिदान के नहीं मिली हैं। पाठ्य पुस्तकों के इस इतिहास में अनेकों क्रांतिकारियों के बलिदान को प्रस्तुत करने में भारी भेद-भाव बरता गया। हमें पाठ्य पुस्तकों कि इस कमी की आपूर्ति हेतु बच्चों को वास्तविक इतिहास से परिचित करवाते रहना होगा।

भारत का इतिहास १० हजार वर्षों से भी पुराना हैं। भारत प्रभु रामकृष्ण की धरती हैं। भारतीय इतिहास कम-से-कम बगैर रामकृष्ण गाथा के शुरू ही नहीं हो सकता। लेकिन हमारी पाठ्य पुस्तकों के इतिहास में हमारे पौराणिक कथाओं का नामोनिशान तक नहीं। देश कि संस्कृती के दुश्मनों ने प्रभु रामकृष्ण को मात्र अध्यात्म का पात्र बना कर रख दिया। यह बडे़ ही दुःख कि बात हैं की हमारे देवताओ के प्राचीन इतिहास को मात्र काल्पनिक व धार्मिक मुद्दा बतला कर शिक्षा से ही हटा दिया गया जब की एसे कइ घटनाओ के नामोनिशान आज तक हमें नजर भी आते हैं..

— क्या श्री लंका नाम का देश नहीं हैं?
— क्या राम सेतु रामायण का जीता-जागता प्रमाण नहीं?
— रामसेतु के पत्थरों मे चमत्कारी शक्ती आज भी यथावत हैं
— समुद्र मे डूबी द्वारका नगरी कृष्ण काल का प्रमाण देतीं हैं
— पांडव द्वारा बसाई गई इन्द्रप्रस्थ नगरी (पुराना किला)

ऐसे सैकडों प्रमाण होते हुए भी आज इन्हे हमारे इतिहास कि शिक्षा से पूर्णतः हटा दिया गया। भारत कि पूज्य धरा तपस्वियों की भूमी कही जाती हैं। इस धरती पर जहाँ ऋषि-मुनियों ने अपनी योग-तपस्या से ज्ञान अर्जीत किया वहीं वीर योद्धाओं ने अपने पराक्रम से मात्रभुमी व धर्म कि रक्षा की। लेकिन हमारे इतिहासकारों ने एक और जहाँ पौराणिक इतिहास को शिक्षा से नदारद किया वहीं वास्तविक क्रांतिकारियों से भेदभाव के किया। यहाँ तक कि एक परंपरा अतिक्रमणकारीयो को महान बताने कि भी चला दी गई।

स्थानको के प्राचीन नाम

आज के कइ नामी शहर हैं जिनका नाम प्राचीन भारत के इतिहास में बड़ा ही महत्व रखता था लेकिन उन्हें बदल कर हमारी पौराणिक धरोहर को मिटाने के षड़यंत्र का आभास होता हैं। ऐसे कुछ निम्नलिखित उदाहरण…

फैजाबाद का नाम अयोध्या
कानपुर का नाम कान्हापुर
दिल्ली का नाम इन्द्रप्रस्थ (हस्तिनापुर)
हैदराबाद का नाम भाग्यनगर
इलाहाबाद का नाम प्रयाग
औरंगाबाद का नाम संभाजी नगर
भोपाल का नाम भोजपाल
लखनऊ का नाम लक्ष्मणपुरी
अहमदाबाद का नाम कर्णावती
अलीगढ़ का नाम हरीगढ़
मुजफ्फरनगर का नाम लक्ष्मीनगर
शिमला का नाम श्यामली….!

ऐसे ही कइ एतिहासिक इमारते भी हैं जिनकी पौराणिक पहचान को मिटाने के लिए उन्हें भी नये नाम दे दिए गए…

पुराना किला – पांडवों की नगरी इन्द्रप्रस्थ
कुतुब मीनार – विष्णु-स्तंभ
ताज महल – तजो महल

इतिहास से मिलती सिख

– जहाँ हमारी संस्कृती अतिथियों के सत्कार की हैं वहीं इतिहास सिखाता हैं कि अतिथियों के रूप में आये षड्यंत्रकारीयों से सावधान रहे।

– हम जहाँ दुसरों के आदर में नतमस्तक हुए जाते हैं वहीं स्वयं का आत्मसम्मान कि रक्षा के लिये तत्पर होना भी जरूरी हैं।

– हमारी आपसी फुट जहाँ हमें कमजोर बनातीं हैं वहीं दुश्मन को अधिक बल देतीं हैं।

क्यों वंचित रखा गया वास्तविकता से

जिस तरह दीर्घकालीन साम्राज्य हेतु आज़ादी पुर्व के शासकों को भारतीय इतिहास मिटाना था इसीलिये उन्होंने अनगिनत तथ्यों-इमारतों को नष्ट किया उसी तरह आज़ादी के पश्चात धर्मनिरपेक्ष-षडयंत्र के चलते हमारे इतिहास को खोखला बना दीया गया। यह हम भारतीयों को एक तरह से मानसिक गुलामी कि राह पर ढ़केलने कि कोशिश हैं। किसी भी राष्ट्र का इतिहास वहाँ की जनता के लिये मूलभूत शिक्षा का हिस्सा हैं। देश कि पीढी को वास्तविक इतिहास जानने का पुरा अधिकार हैं। हमें हमारी पीढी को शुद्ध इतिहास का ज्ञान मिल सकें इसके लिये हमें तत्पर रह कर संघर्ष करना होगा।

जहाँ एक तरफ भारतीय इतिहास साहस, शौर्य व बलिदानों से परिपूर्ण हैं वहीं एसे भी कइ दौर हैं जिनमें विदेशी शासकों द्वारा बरतें गये सैकडों अमानवीय अत्याचारों कि दास्ताने लिखित हैं।

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