आजाद भारत का सच
आज कहने को तो भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र हैं जिसमें लोकतंत्र स्थापित हैं – अर्थात जनता द्वारा, जनता के लिये चुना गया प्रशासन। लेकिन आज़ादी के पश्चात से आज तक जैसी व्यवस्था मिली हैं यह कहने को मजबूर करती हैं कि भारत पर अब तक भारतीयों का पूर्ण अधिकार कभी हो ही ना सका। भारत को लुटने का जो सिलसिला गुलामी काल से प्रारम्भ हुवा था आज तक थम नहीं पाया। फर्क मात्र इतना रह गया हैं कि पहले मुगल व गोरे लुटा करते थे आज विदेशी तंत्र चंद लोगों को मोहरा बना कर लुट रहे।
हाँ, कहने को तो प्रशासन में सभी भारतीय ही होते हैं किंतु उनमें से कइ सुत्रधारों के दिल विदेशियों के हाथों खरीद लिये जाते हैं। आज अपने परिवेश में जहाँ नजर दौडाऔगे विदेशियों का साम्राज्य नजर आयेगा। आज देश के सभी बडे़ अखबार, न्युज चेनल, मनोरंजन चेनल, घरेलु उत्पाद, विद्युत उत्पाद विदेशीयों की पुँजी पर चल रहे। इसके अलावा भी शिक्षातंत्र, गैरसरकारी संगठन, फिल्म जगत जैसे जगत पर भी विदेशियों का वर्चस्व काफी गहरा बना हुवा हैं। इन सबके श्रोतो से ना केवल हर वर्ष बेहिसाब पूँजी भारत से बाहर चली जाती हैं बल्कि वे भारतीय मानसिकता को अपने अनुसार गढने वाली साजिशों को भी अंजाम दिए जा रहे।
क्या हैं इन विदेशी तंत्रों का उद्देश्य
आज हमारे पास आज़ाद होने का जुमला जरूर हैं किंतु हमें एक मानसिक गुलामी में जकडा जा रहा। हमें हमारी संस्कृती को कुप्रथा बता कर हमसे अलग किया जा रहा। हमारी सभ्यता को संकुचीत मानसिकता का दर्जा दिया जा रहा जिससे विदेशी सभ्यता को सहजता से हम स्वीकार कर ले। यह एक प्रकार का धीमा विष हैं जिसके फैलने पर हम पुरी तरह से अपनी पहचान भुला बैठेंगे।
भारत के इन छिपे हुए विदेशी मालिकों ने खुद को भारत के भविष्य निर्माता समझ कर वे भारत को स्वयं के आधीन बनाये रखना चाहते हैं। विदेशी शैली, व तरह-तरह के षडयंत्रों को फैलाकर वे एक तीर से तीन निशाने साध रहे…
— पहला वे अपने उत्पादों के लिये भारत को एक बाजार बना रहे जिससे उनकी अर्थव्यवस्था बनी रहे
— दुसरा भारत से भारतीयता को मिटाना ताकि विदेशी धर्म, सभ्यता व संस्कृती का प्रसार हो सकें
— तीसरा भारत कभी स्वावलंबी ना बन सके, असमर्थ रहे व उनपर आधारित रहे जिससे विश्व पर उनका वर्चस्व कायम रह सके
इन विदेशी षडयंत्रकारो को पता हैं कि यदि भारतीय जागृत हो उठे तो ना ही उनके उत्पाद बिकने हैं, ना ही उनकी अर्थव्यवस्था टिकी रहेंगी और ना ही विश्व पर उनका दबदबा कायम रहेगा।
मूल से भारतीय, दिल विदेशी
देश के दुकड़े करने वाले कइ षडयंत्रो को अंजाम तक पहुँचाने के लिये इन विदेशी तंत्रों द्वारा निरंतर प्रयास जारी रहते हैं। चूँकि भारत एक लोकतांत्रिक देश हैं तो उन्हें अपने षडयंत्रो को अंजाम देने के लिये एसे भारतीयों कि जरूरत होती हैं जो इनके लिये दलाली कर सकें। उन्होंने कइ एसे भारतीयों के संगठन खडे करने की साजिश कि हैं जो होते तो भारतीय मूल के, उनका रहन-सहन हमारी तरह का होता हैं और वे बोलते भी हमारी बोली हैं लेकिन उनकी आस्था बनी रहती हैं विदेशी मालिकों के प्रती। इसके लिये कइ भारतीयों को कइ बहानों से विदेश आमंत्रित किया जाता हैं व अनेकों प्रकार के प्रशिक्षण से गुजारकर वे उनमें से एसे भारतीयों को चुनते हैं जो इनके दलाल के रूप में भारत में कार्यशील हो सकें। इस तरह से उनको तैयार किया जाता हैं जिससे वे बाते तो हमारी करते हैं किंतु काम अपने मालिकों का अंजाम देते हैं। विदेशी षडयंत्रकारों के ये दलाल भारत में राजनीती, संचारतंत्र, शिक्षण जैसे कइ विभागों में कार्यरत हैं। कइ एसे दलाल विदेशी पूँजी से गैरसरकारी संगठन (NGO) खडे कर भारत विरूद्ध भूमिका निभाने मे लगे हुए हैं। समय-समय पर विदेशी इन्हे कइ तरह के विदेशी पुरस्कार दे कर भारत में प्रसिद्धी भी दिलाते रहते हैं। इन लोगों का राष्ट्रभक्ति से किसी भी प्रकार का कोई वास्ता नहीं होता ये मात्र प्यादे कि तरह इस्तमाल किये जाते हैं।
गैर सरकारी संगठन (NGO)
देश मे गैरसरकारी संगठन की व्यवस्था कइ तरह के समाज व देशहित के उद्देश्य से कि गई हैं। कइ रूप में सरकार भी इनके जरीये हितकारी योजनाओं को जनहित तक पहुँचाती हैं। बहोत से समाजसेवी एसे संगठनों के जरीये जनसेवा का कार्य करते हैं। ये संगठन जनता से मिले चंदे या सरकार से मिली सहायता से सेवा कार्य करते हैं। कइ गैरसरकारी संगठनों ने जनकल्याण के लिये अभूतपूर्व कार्य किया हैं। लेकिन जनहित के लिये बनी इस व्यवस्था में अब विदेशी तंत्र ने सेंध लगानी शुरू कर दी हैं। कुछ संगठनों का नियंत्रण अपने वश में कर विदेशी तंत्र इनका जमकर दुरूपयोग करने में लगा हुवा हैं। ये इन संगठनों को विदेशों से भारी-भरकम पूँजी दानस्वरूप दिलवा कर अपने अनुरूप कार्य करवाते हैं। विदेशी तंत्र संगठनों को अपने अनुसार नाचने के बदले मे कइ बार विदेशी सम्मान व पुरस्कार से सम्मानित भी करता हैं। पैसों व प्रतीस्था कि लालच में कुछ संगठन भी इनके इशारों पर नाचने को तैयार हो जाते हैं। कइ बार तो ये यहाँ से भारतीयों को विदेश बुलवाकर उन्हें प्रशिक्षण देते हैं व उनसे गैरसरकारी संगठन खुलवाते हैं। एसे गैरसरकारी संगठनों को विदेशी तंत्र ने भारत विरोधी नीतियां चलाने का हथियार बना लिया हैं हालांकि आज भी कइ संगठन अपनी नि:स्वार्थ सेवा देने में लगे हुए हैं जिनकी पहचान करनी होगी। किसी भी संगठन कि कार्यशैली को बगैर समझे हमारा इन्हे सहयोग देना हितकारी नहीं होगा।
दलाल गैरसरकारी संगठनों की भुमीका
विदेशी पूँजी पर पलने वाले गैरसरकारी संगठन भारत के हर बढ़ते कदम पर अवरोधक बन कर उभर रहे हैं। इनकी कार्यशैली इतनी सटीक होती हैं जिसे आम जनता को समझना बेहद मुश्किल होता हैं। हर किसी को यहीं नजर आता हैं कि ये जनहित का कार्य कर रहे लेकिन इनका उद्देश्य देश के लिये बडे़ घातक होते हैं।
इनकी भुमीका…
— देश के विकास कार्यो में प्रकृति बचाओ का मुद्दा बनाकर जन आंदोलन को छेडना
— सरकारी विकास परियोजनाओं में भूमी अधिग्रहण के विरूद्ध किसानों को भड़काना व आंदोलन करना
— जाती आधारित संगठन खडे कर दुसरे वर्ग के प्रती विरोधाभास पैदा करना जिससे अंदरूनी कलह कलह पनपता रहे
— अप्रत्यक्ष रूप से धर्म आधारित संगठन बना कर धार्मिक कट्टरता को बढाना
— अप्रत्यक्ष रुप से धर्म परिवर्तन के लिये माहौल बनाना व विदेशी संस्कृती को बढ़ावा देने हेतु सूची बद्ध तरीके से कार्यक्रम करना जिससे जनभावना का जुकाव बढे
— स्थानीय जन भावनाओ पर अभ्यास कर विदेशियों को रिपोर्ट भेजना जिससे विदेशी तंत्र इन भावनाओ को बदलने कि रणनीति बना सके
— गैर जरूरी मुद्दों को उठाकर महत्वपूर्ण मुद्दों से देश का ध्यान बटाना
— कइ घटनाओ में यह भी नजर आया हैं कि ये संगठन सजायाफ्ता आतंकवादी और अपराधीयों के प्रती लोगों की सहानुभूति तक बनाने मे जुट जाते हैं
शिक्षा प्रणाली में विदेशी निवेश
आज देशभर में मशीनरीयों द्वारा चलायें जा रहे विद्यालय व महाविद्यालयों कि भरमार सी हो गई हैं। इन मशीनरीयों को विदेशों से भारी-भरकम रकम मुहैया कराई जाती हैं। एसे शिक्षण संस्थान नाम मात्रा भी भारतीय संस्कृती का ज्ञान बच्चों को नहीं देते। इसके विपरीत भारतीय संस्कृती के प्रति जहर बच्चों के मन में भरने की कोशिशें की जाती हैं। इनका लक्ष्य होता हैं कि बच्चों का मानसिक जुकाव विदेशी संस्कृती कि और बढ़े।
शिक्षण संस्थानों मे विदेशी तंत्र ने अपना वर्चस्व एक बेहद दीर्घकालीन नीति के तहत बढ़ाया हैं। जहाँ बच्चों को बालपन से ही परिवार से उसे अपनी सभ्यता-संस्कृती से परिचय होना शुरू होता हैं वहीं एसे विद्यालयों में उस पर अंकुश लगा कर उन्हें विदेशी संस्कृती कि तरफ झुकाना शुरू कर दिया जाता हैं। बालपने से विदेशी शिक्षण मे झुका बालक भविष्य में भारतीय मूल संस्कृती को समझे एसी क्षमता उसमें लगभग खत्म कर दी जाती हैं। यहीं कारण हैं कि एसे विद्यालयों से निकला शिक्षित वर्ग आज स्वयं की पहचान भूलता जा रहा।
हर माता-पिता के लिये जरूरी हैं की विदेशी षडयंत्र के द्वारा फैले जाल के तहत बने विद्यालयों में बच्चों को ना पढ़ाए। आधुनिक शिक्षा सहित भारतीय मूल शिक्षा के ज्ञान से भी बच्चों को अवगत कराए। जहाँ आधुनिक शिक्षा मात्र प्रमाणपत्र दिलवाएगी वहीं भारतीय मूल का ज्ञान उनमें चरित्र निर्माण कर इंसान बनाएगा।
धर्मांतरण का महाजाल
भारत में विदेशियों ने धर्मांतरण के लिये एक महाजाल सा फैला रखा हैं। देश के हर राज्य में कइ आदिवासी इलाके इसकी चपेट में आ चुके हैं और इनका यह जाल निरंतर फैलता जा रहा।
ये अपनी कूटनीति के तहत चुनिंदा धर्म, जो मूलतः भारतीय नहीं हैं, को प्रोत्साहित कर धार्मिक कट्टरता फैलाते हैं। चुकी विदेशी धर्म के अनुयाइयों की आस्था पहले से ही उस विदेश के प्रती झुकी हुई होती हैं जहाँ से उनका धर्म स्थापित हुवा था, वे आसानी से इनके बहकावे में आ जाते हैं। एसे धर्मों के कुछ धर्माता भी अपने धर्म के वर्चस्व को बढ़ाने की लालसा में इन विदेशी तंत्रों के हाथों की कठपुतलियां बन जाते हैं व भारत विरोधी अभियान छेड़ देते हैं। इसके लिये समय समय पर भारी भरकम पूँजी भी विदेशी तंत्र इन्हे उपलब्ध कराते रहते हैं।
विदेशी हाथों की कठपुतली बन चुके धर्माता आदिवासी व दुर्गम स्थलों पर विदेशी धर्म के धार्मिक भवनों का निर्माण कर वहाँ के आस-पास के इलाकों मे विदेशी धर्म का प्रचार करते हैं व उन्हें कइ तरह कि सहायता का प्रलोभन दे कर उनका धर्मांतरण करवाते हैं। इस तरह इन्होंने कइ गाँवों के धर्मांतरण को अंजाम दिया हैं। दशकों से चले आ रहे इस षडयंत्र के चलते आज कइ घरों में विदेशी धर्म तले पीढ़ियां भी बदल चुकी हैं।
कइ जगहो पर एसे किस्से भी मिले हैं जहाँ एक धर्म विशेष अपने युवाओं को दुसरे धर्मों की लडकीयों को प्रेम जाल मे फ़ांस कर विवाह लेते हैं तत्पश्चात विवाहिता को विदेशी धर्म स्वीकार करने के लिए विवश किया जाता हैं। ऐसे कुकर्मो के लिए विदेशी धार्मिक संगठन देश में स्वधर्मी युवकों को न केवल प्रोस्ताहित बल्कि पुरुष्कृत भी करते रहते हैं। एक लड़की का विदेशी धर्म स्वीकारने का अर्थ उसकी अगली सारी पिढीया उस धर्म के तले आ जाती हैं। कइ विदेशी धर्म ठेकेदार अपने समुदाय के लोगों से अपील यह भी करते हैं कि वे बेहिसाब संतानें पैदा करे जीससे उनकी संख्या-वृद्धि होती रहे। एसे षडयंत्रो के चलते हर वह भारतीय जीसका धर्मांतरण किया जाता हैं वह देश कि मूल धारा से कट जाता हैं व अपने नवीन धर्म के विदेशी श्रोतों के प्रती निष्ठावान होता चला जाता हैं। इस तरह यह कहना गलत नहीं होगा की ऐसे षडयंत्र के चलते यदि एक धर्मांतरण होने का सीधा अर्थ एक राष्ट्रविरोधी मानसिकता का जन्म।
एसे नाना प्रकार के षडयंत्रो से स्थिती यहाँ तक पहुँच चुकी हैं कि कइ राज्यों की जनसँख्या का अनुपात तक हिल चुका हैं अथवा हिलने के कगार पर हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, इलाकों राज्यों में राष्ट्र-विरोधी तत्व लगातार बढ़ोत्तरी पर हैं। देश में विदेशी धर्म के अनुयाइयों कि जनसँख्या वृद्धि के पिछे विदेशी तंत्रों का लक्ष्य हैं कि वे एक तरह से गृहयुद्ध कि स्थिती पैदा करे व देश में धार्मिक सद्भावना हमेंशा ताक पर रहे। यह देश के लिये एक गम्भीर भविष्य का संकेत हैं जिसे समझना आज हर भारतीय के लिये बेहद जरूरी हो चुका हैं।
संत परंपरा पर अप-घात
विदेशियों द्वारा खेले जा रहे धर्मांतरण के खेल में कइ इलाकों में इनके लिये जो सबसे बड़ी रूकावट बन कर खडी हैं वह हैं हमारी संत परंपरा। लाखों ऐसे गाँव हैं जहाँ आज भी लोग संतों के प्रती श्रद्धा रखते हैं। उनकी यहीं श्रद्धा संत के जरीये एक जुटता स्वरूप उभरती हैं। इस तरह ऐसे क्षेत्र में विदेशी धर्मात्माओं कि दुकान चल नहीं पाती साथ ही कइ एसे दुर्गम आदिवासी क्षेत्र जहाँ विदेशियों ने जिन लोगों का धर्मांतरण करवा दिया होता हैं वहाँ भी संत पहुँचकर सत्संग व प्रवचन के जरीये ज्ञान फैलाकर उनकी घर वापसी करा देते हैं। जब से संत वर्ग ने इन विदेशियों के षडयंत्र को भाँपा हैं उन्होंने और भी सतर्कता बरतनी शुरू करदी हैं। इससे विदेशी तंत्र बौखला गया हैं। संतों को अपने षडयंत्रो के मार्ग से हटाने हेतु इन्होंने जो पैंतरा खेला हैं उसके अनुसार ही संपूर्ण देश में अनेको संतों पर कइ तरह के आरोप मढ़ने व उनके विरुद्ध दुष्प्रचार शुरू किया। अनेको संत आज एसे हैं जिन पर घिनौने आरोप लगाये गये, उन्हें सालों-साल जेल में रखा गया किन्तु न्याय प्रक्रिया के उपरांत उपरांत वे निर्दोष सिद्ध हुए।
विदेशी षडयंत्रकारों की पुरजोर कोशीश हैं कि देश में संतों के विरूद्ध वातावरण बनाया जाये जिससे संतों पर से लोगों का विश्वास ही खत्म हो जाये व उनका धर्मांतरण का धंधा बगैर अवरोध के चलता रहे। इसके लिये वे अपने द्वारा पोषित संचार-तंत्र का पुरा उपयोग करते हैं। कइ फिल्मों-धारावाहिको की कहानीयाँ भी प्रायोजित की जाती हैं जिसमें साधु-संतों को एक खलनायक के रूप में पेश किया जाता हैं, जिन में हमारी सभ्यता-संस्कृती का मखौल उडाया जाता हैं व अंधविश्वास-रूपी होने का दावा किया जाता हैं। इनके इन कुप्रयासो ने आज दर्शकों के एक बडे़ वर्ग को प्रभावित किया हैं। जिन्हे धर्म का कोई ज्ञान ही नहीं वे इनके झांसे में आसानी से फँस कर अपने संतों के दुष्प्रचार में इनका साथ देते हैं। इनमे अधिकतर एसे लोग हैं जो स्वयं को शिक्षित मानते हैं।
कानून व्यवस्था पर वर्चस्व
भारत में व्यापार कर भारत के ही विरूद्ध जुटे विदेशी तंत्र ने कइ रूप से न्याय व्यवस्था को अपना खिलौना बनाने कि कोशिश कि हैं। इन्हे ये ज्ञात हैं की भारत विरोधी षडयंत्र में न्याय व्यवस्था पर इनका नियंत्रण होना इनके लिये आवश्यक हैं क्यूँ कि धर्मातंरण, संतों पर अपराधीक मसले, स्वदेशी उत्पादों पर विवाद व घटिया विदेशी उत्पादों का बचाव जैसे मुद्दे अंत में न्याय व्यवस्था से ही हो कर गुजरने हैं। एसा नहीं कहाँ जा सकता की सारी न्याय प्रणाली इनके हाथों में हैं लेकिन न्याय व्यवस्था में इनकी दखल-अंदाज़ी बढ़ी हैं व एसे कइ उदाहरण हैं जिससे ये शंका भी मजबुत होती हैं जैसे कइ अपराधीक हस्तियों को त्वरित बेल मिलना व सजा व्याप्त रहते भी आसानी से अवकाश मिल जाना लेकिन वहीं संतों व देशभक्तों के प्रती न्याय व्यवस्था की बेरूखी।
टीवी-फिल्म जगत पर कब्जा
आज के दौर में टीवी की भूमिका हमारे परिवार में अहम हो चुकी हैं। टीवी परिवार के लिये ज्ञान, मनोरंजन व समाचारों का एक मुख्य श्रोत के रूप में उभर चुकी हैं। युँ तो बच्चों कि प्रथम गुरू के रूप में माँ को माना जाता हैं किंतु बदलते युग में आज टीवी ने बच्चों के प्रथम गुरू का स्थान ले लिया हैं। टीवी कि इसी विशेषता के चलते ही विदेशी तंत्र ने अनेकों नामी चैनलों में निवेश कर इस जगत पर अपना दबदबा कायम कर लिया हैं। परिवार का मुख्य श्रोत मानी जाने वाली टीवी अब कइ रूपों में ज्ञान कि जगह अज्ञान बाँट रही, मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता फैला रहीं व समाचारों के नाम पर बिकाऊ खबरें व अनावश्यक मानसिकता थोप रहीं। आज विदेशी तंत्र ने कइ चैनलों व नामी मनोरंजन कंपनियों मे भारी भरकम पूँजी लगा रखी हैं। अपने इस वर्चस्व से वे देश में संचार तंत्र को नियंत्रित कर रहे, किस खबर को महत्वपूर्ण बनादेना हैं यह अब उनके अनुसार निर्धारित होने लगा हैं। मनोरंजन के नाम पर अश्लील व गैर समाजिक धारावाहिक को की होड सी लगी हुई हैं। कइ धारावाहिकों कि कथा भी विदेशी लेखकों द्वारा लिखाई जा रहीं जिसमें भारतीय समाज के उन पहलुओं पर ज्यादा जोर दिया जाता हैं जिससे हमारे समाज कि कुप्रथाओं उभरकर आये व दर्शकों के मन में यह भर सकें की हमारे संपूर्ण समाज की सोच ही संकुचीत हैं।
इसी तरह फिल्म जगत में भी अब विदेशी पूँजी का इस्तमाल जम कर हो रहा जीसमे अश्लीलता व परिवारिक-समाजिक अराजकता को ही मुख्य मुद्दा बना कर पेश किया जाता हैं। कई फिल्मों कि कथा को इतिहास पर आधारित बता कर हमारे एतिहासिक गौरव को भी तोड मरोड़ कर पेश किया जा रहा। कइ एसी पथकथा का भी निर्माण किया गया जिसमें देश के गद्दारो को नायक बना कर पेश किया गया। आज फिल्म जगत पर विदेशीतंत्र व माफियाओं ने अपना एका अधिकार सा स्थापित कर लिया हैं जिनके द्वारा बनाई गई फिल्मों को पैसे देकर देखकर हम गुंडाराज व आतंकवाद को स्वयं पर आमंत्रित कर रहे हैं और यह सब हो रहा हमारे ही देश से चुने कलाकारो, फिल्मकारों के जरीये जो पैसों की लालच में कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। हमें आवश्यकता हैं की हम टीवी व फिल्म जगत से जुड़े एसे गद्दारो को पहचान कर उनके धारावाहिकों व फिल्मों का बहिष्कार करे व विदेशीतंत्र के षडयंत्र को परास्त करे।
देश के टुकड़े-टुकड़े करने की कुटनीती
देश को कइ हिस्सों में तोड़ने का षडयंत्र भारत को आज़ादी देने के पुर्व ही से अंग्रेजो ने गढ लिया था जिसके लिये कइ तरह के गृहयुद्ध के बीज उन्होंने बोये। भारत से पाकिस्तान का विभाजन इसका ही नतीजा था। अंग्रेजो भारत के विभाजन के लिए जितने बीज बोये थे उनके ऐसे षडयंत्रकारी बीजो का पालन-पोषण आज भी देश में कइ राष्ट्र-विरोधी शक्तिया करती आ रही हैं। भारत विरोधी कइ विदेशीतंत्रो ने भारत-विभाजन को अपना लक्ष्य बना रखा हैं। देश में धर्मातंरण, पड़ोसी मुल्कों से घुसपैठ, आतंकवाद व धार्मिक असंतोष उनके इसी षडयंत्र की शाखायें हैं जिसे समय-समय पर विदेशी पूँजी से पोषित किया जा रहा हैं। देश से ही चुने इनके कइ भाडे-के-टट्टू देशद्रोही बन कर षडयंत्रो को सफल करने के लिये दिन-रात जुटे हुए हैं। विदेशीतंत्र कि नीति पुरी तरह स्पष्ट हैं कि यदि वे भारत को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँट देंगे तो भारत पुनः कभी सिर उठाकर उन्हें चुनौती देने लायक नहीं रह जाएगा और वे आसानी से इन छोटे-छोटे टुकड़ों पर राज कर सकेंगे। इस विषय पर हम भारतीयों की जागृती व सतर्कता से ही देश को बचाया जा सकता हैं।