मिडिया की जिम्मेदारी
लोकतंत्र में संचार तंत्र चौथा स्तंभ माना गया हैं। संचार तंत्र कि जिम्मेदारी होती हैं कि वे लोगों के सामने देश कि वास्तविक स्थिती को लाये व देश से जुड़े सभी मसलों पर लोगों को “देशहित” में जागृत करें। किंतु लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ पर आज विदेशीतंत्र व देश के ही दलाल राजनेताओं व हस्तियों ने दिमक सी लगा दी हैं। अधिकतर नामी अखबार व न्युज चेनल में विदेशीतंत्रो ने भारी-भरकम पूँजी लगा कर उन्हें अपने वश में कर रखा हैं। कइ संचार तंत्र की कंपनियों के स्वामी स्वयं भ्रष्ट राजनेता बने बैठे हैं। परिणामतः देश में सूचनाओं की दुकान सी लग चुकी हैं जहाँ कीमतों व आदेशों के आधार पर समाचार छापे व दिखायें जाते हैं। आज देश के लिये कौन सी खबर महत्वपूर्ण हैं व कौन सी नहीं यह संचार तंत्र में पूँजी निवेश करने वाले भ्रष्ट पूंजीपति तय करते हैं। इतना ही नहीं बल्कि एक मनोवैज्ञानिक तरीके से किस खबर पर लोगों की प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिये यह भी वे लोगों पर थोपने की कोशिश पर उतर आते हैं।
उदाहरणतः कोई महा-विभूति यदि यह कह दे की ‘लड़कियों को रात को अकेले अनावश्यक घर से नहीं निकलना चाहिये’ जो कि कई परिपेक्ष्य में सही भी हैं, किंतु बिकाऊ संचार तंत्र खबर दिखाते हुए यह साबित करने लग जाता हैं की कहने वाले की मानसिकता ही गलत हैं। वे इस प्रकार वातावरण मंडीत कर देते हैं की हर दर्शक के लिये वह माह-विभूति एक खलनायक बन जाए व साथ ही इसे हम भारतीयों की संकुचीत का मानसिकता भी बता दिया जाता हैं। इस संचार तंत्र के उपयोग से वे सही को झूठ व झूठ को सत्य का चोगा पहना ने से भी नहीं चूकते।
समाज पर संचार तंत्र का प्रभाव
जीस तरह संचार तंत्र आज हमारे समाज का एक अभिन्न अंग बन चुका हैं, हमारे समाज पर इसका प्रभाव भी गहराता जा रहा हैं। भले ही वह प्रातः का समाचार-पत्र हो या टीवी के माध्यम से प्रसारित समाचार, इनकी पहुंच आज हर घर की चौखट लांगती हैं। ये इतने प्रभावशाली हैं की परिवार का बच्चा-बच्चा भी इनसे प्रभावित हो जाता हैं। आज हम समाचारों के लिये इन्ही श्रोतों पर आधारित होते जा रहे। संचार तंत्र ने भी हमारे जीवन के जुड़े हर पहलुओं से जुड़ने की भरपूर कोशिश की हैं। फिर भले ही वह सामाजिक या राजनीतिक विषय हो या फिर धार्मिक मान्यता,वार-त्यौहार अथवा मनोरंजन हो। एसी परिस्थितीयों में विषयों पर संचार तंत्र ने हमारे वैचारिक क्षमता को अपने दायरे में ही सीमित-सा कर दिया हैं। हमें इनके प्रती जागरूक होना ही होगा। यदि हम इनके प्रती सजगता नहीं बरतेंगे तो यह हमारी वैचारिक क्षमता की मानसिक गुलामी स्वरुप होगा जिसका पूरा नियंत्रण संचार तंत्र के हाथो होगा।
राजनीति पर संचार तंत्र का प्रभाव
यह बिकाऊ संचार तंत्र की ही देन हैं कि हमारी राजनीति में कइ फर्जी नेताओं की भरमार हो चुकी हैं। एसे नेता जिनका कोई जनाधार ना होते हुए भी कुछ चंद महिनों में ही इस लिये प्रसिद्धी पा जाता हैं क्यूँ कि बिकाऊ संचार तंत्र उसकी महिमामंडन कर जनता के मानस पटल पर उसके नाम को स्थापित कर देते हैं। वहीं एक ईमान दार व राष्ट्रभक्त नेता जनाधार होते हुए भी प्रसिद्धी पाने में दशकों बिताने पड जाते हैं। एसे बनावटी नेताओं की वजह से ही देश की राजनीति का वातावरण बिगड़ा हैं। इस तरह भारतीय राजनीति को बिकाऊ मिडिया बुरी तरह प्रभावित करता आया हैं। जहाँ बिकाऊ तंत्र भ्रष्टाचारी नेताओं कि पोल खोलने से परहेज करता हैं वहीं ईमानदार नेता के विरूद्ध छोटे-मोटे आरोपों को भी बड़ा भ्रष्टाचार साबित कर दर्शकों व पाठकों को पुरी तरह गुमराह कर देता हैं। अपनी पत्रकारिता को निष्पक्ष बताते हुए नेताओं के भ्रष्टाचारी और ईमानदारी का फर्क पुरी तरह धुमील कर देते हैं अर्थात जनता इस कद्र भ्रमीत रहे की उसे सभी नेता एक जैसे नजर आने लगे। आज जनता में जो सभी नेता चोर वाली भावना उत्पन्न हुई हैं उसमें बिकाऊ मिडिया का बड़ा योगदान रहा हैं। अपनी पत्रकारिता का धंधा कर कइ मामुली पत्रकारों ने आज अरबों-खरबों की संपत्ति बना ली हैं। अपनी पत्रकारिता की दलाली करते हुवे कई मामूली से पत्रकारों ने स्वयं के समाचार-चेनल तक खोल लिये हैं। कइ संचार तंत्र में कार्यरत बड़ी व नामी कंपनियों की स्वामित्तता स्वयं राजनेता ने हांसिल कर ली हैं जिनके समाचार पतों व चेनलो पर मात्र उनकी तुती ही बोलते हैं। देश में कइ प्रायोजित आन्दोलनों को प्रसिद्धी दीलाने में भी बिकाऊ मिडिया ने अहम भूमिका निभाई। इस तरह के आन्दोलनों ने जहाँ जनता को कोई लाभ ना पहुँचाया वहीं जनता के सिर कइ नये फर्जी नेताओं को जन्म दे दिया। आज हालत यह हो चुकी हैं की हम अब मात्र संचार तंत्र के भरोसे ही देश के राजनेताओं का चयन नहीं कर सकते। हमें चाहिये कि हम दौगले पत्रकार जिन्होने ने अपनी पत्रकारिता का सौदा कर रखा हैं, भांड मिडिया चेनल जिनकी स्थापना ही देश को धोखा देने के लक्ष्य से हुई हैं उनको पहचाने व उनका बहिष्कार करें। सही-गलत नेता की पहचान अपने विवेक से करे क्यूँ की आज का संचार तंत्र लगभग पुरी तरह से नैतिकता विहीन हो चुका हैं।
नकारात्मकता का प्रचार
आज जीस किसी माध्यम को आप अपने समाचार के लिये इस्तमाल करेंगे आपको नकारात्मक खबरों की भरमार मिलेगी। कइ भांड मिडिया देश में नकारात्मकता फैलाने के मिशन पर लगे हुए हैं। उन्हें देश में मात्र भ्रष्टाचारी नेता नजर आते हैं लेकिन ईमानदार नेता नहीं, उन्हें केवल महिलाओं पर अत्याचार करने वाले नजर आते हैं लेकिन महिलाओं के लिये चिंतित व प्रोत्साहित करने वाला समाज नजर नहीं आता, इन्हें तंत्र की विफलता पर तो चिखना चिल्लाना आता हैं किंतु वहीं जहाँ तंत्र तत्परता से कार्य करता हैं उसे हमेशा नजर अंदाज़ कर देते हैं। इस तरह ये कइ रूप में पुरे देश में असंतोष, अराजकता व निराशा फैलाने में जुटे हुए हैं।
अब सवाल यह उठता हैं की आखिर इससे इन्हे क्या लाभ? यह एक सोचा समझा षडयंत्र सा चल रहा हैं। इस तरह नकारात्मकता के माहोल अधिकतर आम इंसान को राजनीती, समाजसेवा जैसे विषयों से दुर ले जाते हैं। साधारण इंसान के सामने इतने समस्यायें परोस दी जाती हैं कि वह इन सब में उलझने कि बजाय मात्र स्वयं पर ध्यान देने की प्रवृत्ति में ढलता चला जाये। माताये-महिलाये घबराकर अपने परिवार के सदस्यों को किसी से उलझने के लिये रोके व बच्चों को भी यहीं सिखाये की वह झंझटों से दुर ही रहा करे। इस नकारात्मकता के माहोल ने ही असमाजिक तत्वों को राजनीति से जुड़ने का मौका दिया हैं, समाजसेवा के बहाने अवसर का लाभ उठाने वालों ने अपनी जगह बना ली। जबसे एसे लोग समाज के ठेकेदार के रूप में उभरने लगे हैं तब से पूंजीपतियों व षडयंत्रकारीयों की राह आसान हो चली हैं क्यूँ की राजनीति व समाजसेवा से जुड़े असामाजिक तत्व खुद के फायदे व प्रतिष्ठा में बने रहने के लिये कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाते हैं वहीं सभ्य व ईमानदार वर्ग द्वार अपेक्षा के चलते इनको अच्छे प्रतिद्वंदी भी नहीं मिल पाते।
मानसिकता का कारखाना
आज बिकाऊ संचार तंत्र एक तरह की समाज विरोधी मानसिकता फैलाने का कारखाना बन चुका हैं। आज समाज में प्रचलित अनेकों कुप्रथा को जन्म हमारी भांड मिडिया ने ही दिया हैं। कइ तरह की सोच थोपे जाने का जिम्मेदार बिकाऊ संचार तंत्र समाज जागृती के बजाय समाज विकृति का श्रोत बनता नजर आ रहा हैं। यदि हम इनके एसे षडयंत्रो के विरोध में लोगों को जागृत ना कर सकें तो हमें ही इनके द्वारा फैलाई समाजिक विकृति के दुष्प्रभाव, जिसे हम आज भी झेल रहे हैं, निरंतर झेलना होगा।
विकृत मानसिकता जिसे बिकाऊ मिडिया फैला रहा:
– सभी नेता भ्रष्ट हैं व वादे करके मुकर जाते हैं
– राजनीति मात्र अनपढ़ व गवारों का अखाडा बन चुकी हैं
– अधिकतर साधु-संत ढोंगी ही होते हैं व उनके अनुयाई भोले-भाले ना समझ लोग
– कम व छोटे कपडे पहनने से रोकना कन्या जाती पर अन्याय हैं, जो पहन रहीं वह आज की आधुनिक नारी व जो नहीं पहन रहीं वह घरेलु या संकुचीत सोच की
– स्त्री अन्याय की खबरों पर पुरूष वर्ग को कौसना जिससे सारे पुरूष एक जैसी ही मानसिकता में नजर आये
– अश्लीलता को समान्य व्यवहार का हिस्सा मनवाना
– अश्लीलता को बढ़ावा देने वाले कलाकारों का जम कर प्रचार
– त्योहारों पर प्रदुषण का खतरा
– सरकारी तंत्र की कामचोरी व लापरवाही को जमकर उभारना जीससे आम लोगों का विश्वास सरकारी तंत्र से उठ जाए
– आतंकवादियों व माफियाओं की खबरों को अनावश्यक रूप से महत्वपूर्ण बनाना जो कइ रूप से उनके लिये खलनायक से ज्यादा नायक जैसी भूमिका निर्माण करे
– कृषि व्यवसाय का पिछड़ा-पन व अन्याय सहते किसान जिससे समाज में कृषि के प्रती मात्र सहानुभूति हो किंतु कोई पढ़ा-लिखा इस से जुड़ने से ही कतराये।
– फिल्मी कलाकारों व खिलाडियों के जन्मदिवस को क्रांतिकारियों से ज्यादा महत्वपूर्ण रूप से मनाना जिससे लोगों के लिये इतिहास विषय से रूचि ही खत्म हो जाये
भारतीयता का विरोधी बिकाऊ संचारतंत्र
जितने भी बिकाऊ संचार तंत्र देश में कार्यरत हैं उनमें से अधिकतर संचार तंत्र पूर्ण रूप से भारतीयता के घोर विरोधी हैं। हर तरह की भारती सभ्यता-संस्कृती, मान्यता व हर वह शख्सियत जिनसे इन्हे बढ़ावा मिलता हैं, बिकाऊ तंत्र उसके विरूद्ध माहोल बनाने व बदनाम करने कि कवायद में लगजाते हैं।
हम इनकी कार्यशैली पर नजर डालेंगे तो एसे ढेरों प्रयास हमें साफ नजर आते हैं जिनके आधार पर इसकी पुष्टी आसानी से हो जाती हैं।
— भारतीय मूल के धार्मिक स्थलों पर अपघात व अपमान इनके लिये खबर नहीं बनती किंतु विदेशी मूल के धर्मों पर पडा छोटा पत्थर या चोरी कि खबर को भी सांप्रदायिकता का रंग लगा कर जोर-शोर से उठाते हैं
— भारतीय मूल संस्कृती को मानने वालों पर होने वाले बडे़-से-बडे़ अत्याचार व दंगे इनकी खबरों में स्थान तक नहीं पाते वहीं विदेशी मूल की संस्कृती को मानने वालों पर हुए अत्याचार को ये सांप्रदायिकता का तडका लगा कर ब्रेकिंग न्युज बना दिया जाता हैं
— भारतीय संस्कृती के धर्माता आदि संस्कारों की बाते भी करदे तो उसे ये “विवादीत” बयान बताकर बदनाम करने में लग जाते हैं वहीं विदेशी मान्यता के धर्माता सरेआम नफरत फैलाते रहते हैं, अपने अनुयाईयों को बेतुके नियमों का अनुसरण करवाते हैं लेकिन उस पर कोई टीका-टिप्पणी नहीं की जाती
— यदि कोई भारतीय मूल संस्कृती के धर्माता राजनीति से जुड़े तो इन्हे नहीं खलता किंतु विदेशी संस्कृती के धर्माता उनके अनुयाइयों के मतों का पूर्ण रूप से ध्रुवीकरण कर दे तो भी ये खामोश रहजाते हैं
— भारतीय मान्यताओं में इन्हे श्रद्धा कम व अंधविश्वास ज्यादा नजर आता हैं किंतु विदेशियों कि मान्यताएं इन्हे श्रद्धा के भंडार लगते हैं।
— पड़ोसी देशों मे भारतीय मूल संस्कृती को मानने वाली संपूर्ण जनसँख्या मिटती चली गई किंतु इनके लिये कोई खबर ना बन सकी
— पड़ोसी देशो से लाखों लोगों ने भारतीय सिमा में घुसपैठ कर भारतीय जनसँख्या का अनुपात हिला दिया किंतु इनके लिये मुद्दा ना बन सका
जनता का ध्यान बाँटना
कई बार ऐसा देखने को मिलता हैं की हमें आपसी मित्रों से कई गंभीर समाचार सुनने को मिलते हैं किंतु गंभीर होते हुए भी बिकाऊ संचार तंत्र उन्हें अपनी खबरों का हिस्सा नहीं बनाता। कई बार गंभीर विषयों से लोगों का ध्यान बाँटने के लिये पूरा संचार-तंत्र खेल, मनोरंजन या कुछ और विषयों को उठा कर देश क लोगों का ध्यान महत्वपूर्ण विषयों से भटकाने कि कोशिश में लगजाता हैं। कई बार सोची समझी रणनीति के तहत बनावटी विवादों को जन्म दे दिया जाता हैं। इनके ऐसे पैंतरे जनता को नींद की गोली खिलाने के काम करते हैं जिससे गंभीर विषयों को दब ने का मौका मिल जाए। इनकी एसी हरकतों ने ही आज असामाजिक तत्वों का मनोबल चरम पर पहुँचाया हैं।
देशभक्त संचार तंत्र को बढावा
देश में संचार तंत्र को सुनियोजित करने का जिम्मा देश कि सरकार के हाथों होना चाहिये। सरकार को चाहिये कि वे देश हित में संचार तंत्र के लिये कडे दिशा-निर्देश लागु करे जिससे देश का संसार तंत्र विदेशी षडयंत्रो से पूर्णतया परे रहे। संचार तंत्र से असमाजिक तत्वों का सफाया हो व देशभक्त पत्रकारों की फौज खडी हो सकें। संचार तंत्र कि मौजूदा परिस्थिति को देख कर यहीं कहाँ जा सकता हैं कि आज़ादी के बाद से आज तक संचार तंत्र पर अधिकतर सरकारी नियंत्रण मात्र राजनैतिक लाभ के लिये ही किया गया अन्यथा बिकाऊ व देशद्रोही मिडिया कि इतनी भरमार ना हो पाती।
कइ पत्रकार व न्युज चेनल आज भी हैं जो पूर्णरूप से देशहित को प्राथमिकता देते हैं। चुकी ये अपनी ईमानदारी को प्राथमिकता देते हुए अपनी पत्रकारिता का धंधा नहीं करते, आर्थिक दृष्टि से पीछड जाते हैं व भ्रष्ट पत्रकार आर्थिक दम पर उभरकर आ जाते हैं। देश कि जनता को एसे पत्रकारों के प्रती जागृत हो कर इनका समर्थन करना बेहद जरूरी हैं जिससे उनका मनोबल हमेंशा बना रहे। देश के उत्पाद विक्रेताओं-व्यापारी वर्ग को भी चाहिये कि वे अपने उत्पादों के प्रचार हेतु देशहित के माध्यमों को ही चुने जिससे देशभक्त न्युज चैनलों को आर्थिक प्रबलता मिलती रहे। आज संचार तंत्र में देशभक्ति की राह पर चलरहे पत्रकारों व न्युज चैनलों को उभारकर बिकाऊ मिडिया को पछाड़ना बेहद जरूरी हैं तभी लोकतंत्र कि व्याख्या देशहित में सार्थक हो सकेगी।