सामाजिक परिवेश
प्राचीन दौर से आधुनिक युग तक कइ रूपों में सामाजिक परिवेश बदलता चला गया। इस बदलते परिवेश में कुछ यदि हितकारी बदलाव हुए तो कइ अहितकारी-अनचाही परिस्थितीयों ने भी जन्म लीया। सामाजिक दृष्टि से जो सबसे बड़ा पतन हुवा वह लोगों से लोगों का दुर होना। कहीं लोग आजीविका कि खोज में अपनों से दुर हो गये तो कहीं पास रहते हुए भी पहले जैसा मेल-मिलाप ना रहा। गाँवों की तुलना में शहरों में कइ गुना अधिक दुर्लभ स्थिती बनी हैं। शहरों में तो लोग अपने पडोसियों तक से आजीवन भली-भाँति परिचित नहीं हो पाते। इसका दुष्प्रभाव यह हुवा कि लोगों का सामाजिक जीवन लुप्त सा होता जा रहा जिससे लोगों के बीच राजनीती, धर्म, इतिहास, समाज व देश जैसे विषयों पर होने वाली चर्चा पर पूर्णतया विराम सा लग गया। लोगों कि वैचारिक सोच का आदान-प्रदान लगभग खत्म सा होने लगा था। जिन विषयों पर आम लोगों कि एक राय होनी चाहिये थी उसमें अब विरोधाभास गहरा ने लगा। इस विरोधाभास का नतीजा यह होने लगा कि लोगों का एक जुट होना लगभग नामुमकिन सा हो गया।
एसी ही कुछ परिस्थितियाँ बनी थी जिसने बिकाऊ संचार तंत्र को हमारे सिर चढने का मौका दिया। लेकिन जिस आधुनीकयुग ने हमारी जीवन शैली को सामाजिक व्यवहारिकता से विहीन कर दिया था वहीं इसी आधुनिक युग ने हमें आज हमारे सामाजिक जीवन को एक नये रूप में लौटाया और वह रूप हैं ‘सामाजिक संचार-तंत्र (Social Media)’। आज हम जो हाईक, वाट्सअप, फेसबुक व ट्विटर जैसी सुविधाओं से जुड़े हैं वह आज के आधुनिक सामाजिक संचार-तंत्र का ही हिस्सा हैं। इस माध्यम से हम अपनों से तो आसानी से जुड़ते ही हैं साथ-ही-साथ कई जाने-अनजानों तक अपनी बात पहुँचा भी सकते हैं व उनकी बाते जान भी सकते हैं। इस तरह हम देश व समाज में किसी भी विषयों पर चल रहे लोगों के मुख्यधारा से जुड़े संचार-तंत्र के अलावा भी सामाजिक संचार-तंत्र के नज़रिये से अवगत होते रहते हैं जिसमे साधारण जनता अपने विचारों का आदान प्रदान करती हैं।
सामाजिक-संचार तंत्र का महत्व
आज गाँवों के चौपाल जैसी भूमिका निभाने वाला सामाजिक-संचार तंत्र (Social Media) अपनी विशेषताओं के चलते एक महत्वपूर्ण माध्यम बन चुका हैं। सामाजिक संचार तंत्र ने संपूर्ण विश्व को एक चौपाल बना दिया हैं। इस आधुनिक चौपाल ने सभी को अपने विचार खुलकर रखने की स्वतंत्रा दी हैं। लेकिन यह सुविधा मात्र विचारों तक सीमित नहीं रही हैं, सामाजिक संचार तंत्र इससे भी कहीं अधिक भूमिका में विकल्प बन कर उभर रहा हैं।
— सामाजिक-संचार तंत्र ने सबसे अहम भूमिका लोगों की दुरीयों को मिटाने में की हैं। इस आधुनिक चौपाल पर आप विश्व के किसी भी कोने से अपनी बात रख सकते हैं।
— सामाजिक-संचार तंत्र लोगों के द्वारा संचालित माध्यम हैं जो की बिकाऊ खबरों से लगभग परे हैं। यदि कोई बिकाऊ व दूषित विचार सामाजिक-संचार तंत्र से फैलाने कि कोशिश भी कर ले तो वह तब तक सफल नहीं हो पाएगा जब तक की उसे लोगों का समर्थन ना मिले। इस तरह बिकाऊ होकर भी बुरे व विरोधी विचार समर्थन के अभाव में स्वयं से ही दम तोड़ देते हैं।
— सामाजिक-संचार तंत्र के माध्यम से आप अपने विचार, ज्ञान, अनुभव, भावना व किसी भी प्रकार की जानकारी रख सकते हो व दुसरों से जान भी सकते हो।
— सामाजिक-संचार तंत्र में एक दुसरों के विचारो का समर्थन या विरोध करने का महत्वपूर्ण जरीया बन कर उभर रहा हैं।
— सामाजिक-संचार तंत्र कि सबसे बड़ी विशेषता यह भी हैं कि इसमें आम या खास लोगों के विचारों में फर्क नहीं होता। सभी के विचार समरसता से दिखाईं देते हैं। विचारों का समर्थन या विरोध से विचार अधिक तीव्रता से फैलते हैं।
— सामाजिक-संचार तंत्र ने ना केवल आम जनता को जनता से जोड़ा हैं बल्कि देश कि हर बड़ी हस्ती को सिधे रूप से उनकी पकड़ में लाकर खडा कर दिया हैं।
— सामाजिक-संचार तंत्र ने कइ तरह की असामाजिक घटनाओ पर कडी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सभी को जागरूक व एकजुट करने में भी भूमिका निभाई हैं।
विचारों का शुद्धि करण व लोकतंत्र की मजबुती
लोकतांत्रिक व्यवस्था को कारगर होने के लिये प्रथम शर्त यहीं हैं कि बडे़-पैमाने पर देश कि जनता जागृत हो व एक राय से सक्षम नेता का चुनाव कर सकें। लोकतंत्र कि सफलता के लिये लोगों के विचारों का एकीकरण बेहद आवश्यक होता हैं। यदि समाज के लिये कुछ अहितकारी हैं तो जनता का तीव्र प्रतिरोध आवश्यक हैं वहीं हितकारी बदलाव के लिये सभी का एकजुट होना भी जरूरी हो जाता हैं। इस तरह के संघीय ढाँचे में सामाजिक-संचार तंत्र बेहद महत्वपूर्ण सिद्ध होता जा रहा। सामाजिक संचार तंत्र के प्रारूप को देखते हुए यह कहाँ जा सकता हैं कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिये यह एक वरदान बनकर उभरा हैं।
सामाजिक-संचार तंत्र से जहाँ लोगों को खुलकर विचार रखने का मौका मिला हैं वहीं दुसरों के समर्थन व प्रतिरोध के चलते जनता में बडे़ पैमाने पर वैचारिक शुद्धिकरण कि प्रकिया को गती मिली हैं। यदि कोई अप्रासंगिक विचारो को फैलाने की कोशिश करता हैं तो कडे प्रतिरोध के चलते उसे अपनी भुल सुधारनी पडती हैं इस तरह एसे विचारों के प्रती लोग सतर्कता बरतना शुरू कर देते हैं। वैसे ही किसी ने यदि एक छोटा भी विचार समाज हित में फैलाया तो भारी समर्थन से उसका मनोबल भी बढ़ता हैं व औरों के लिये प्रेरणा दायक भी हो जाता हैं। सामाजिक-संचार तंत्र ने इस तरह लोगों में वैचारिक एकता को एक दिशा दी हैं। लोगों कि सोच एक दिशा में बढ़ने तथा लोगों में वैचारिक शुद्धिकरण से लोकतंत्र को मज़बूती मिली हैं अन्यथा जिसके अभाव में लोकतंत्र एक अभिशाप बनता जा रहा था।
जानी-मानी हस्तियों पर जनता की पकड़
अक्सर हमने देखा हैं कि बड़ी हस्तियां मंच पर आती हैं अपने दो शब्द प्रकट करती हैं, लोग ताली बजाते हैं और चले जाते हैं। लेकिन सामाजिक-संचार तंत्र के रंगमंच कि विशेषता कुछ एसी हैं जिसमें हर पक्ष को अपनी बात रखने का पूरा अवसर मिलता हैं। सामाजिक-संचार तंत्र वह रंगमंच हैं जहाँ हर आम और खास मंच पर भी हैं और साथ ही साथ दर्शक भी हैं। इस रंगमंच पर मात्र हस्तियाँ अपनी बात नहीं रखती, जनता भी उन्हें तुरंत जवाब देतीं हैं। जो देशहित की बात करता हैं उसे तुरंत जनता का आशिर्वाद प्राप्त होता हैं व जो भी देश व समाज विरोधी विचार रखता हैं जनता अपने कटाक्ष से उसे उसके मुँह पर धोने लगती हैं। सामाजिक-संचार तंत्र पर कइ हस्तियाँ जिन्हे जनता के दिलों पर छाने का गुमान था, आज उनके असामाजिक विचारों के सामने आने के पश्चात लोगों ने उनको उनकी औकात भी याद दिलाई हैं। इस तरह के प्रतिरोध के चलते कइ हस्तियों को कइ बार माफी तक माँगनी पडी। अबतक मात्र हस्तियों कि भावनायें लोंगों तक पहुँचती थी किंतु अब इस माध्यम से जनता भी अपनी भावनायें हस्तियों तक पहुँचाने में सक्षम बानी हैं। सामाजिक-संचार तंत्र कि इस बहुपक्षीय विचार-विमर्श कार्यशैली ने लोकतंत्र के “जनता जनार्दन” जैसे मंत्र जिसके अनुसार “जनता-सर्वोपरि हैं” को सार्थक किया हैं।
बिकाऊ संचार तंत्र का मुंहतोड़ जवाब
सामाजिक-संचार तंत्र के अभाव में जो स्थितियाँ बनी थी उसके चलते बिकाऊ संचार तंत्र ने आम जनता को बहोत भटकाया। चुकी लोगों के पास देश व समाज कि सूचनाओं के लिये एक मात्र जरीया अखबार व न्युज चेनल था, भ्रष्टतंत्र ने इस पर भारी पकड़ जमा ली। इस तरह जनता ने इन माध्यमों पर जीतना भरोसा किया उतना ही बिकाऊ संचार तंत्र ने लोगों को भ्रमीत किया। देश के वास्तविकता व गम्भीर मुद्दों को दबाया गया व बेमतलब के मुद्दों का अंबार लगाकर देश को अंधेरे में रखने कि कोशिश की गई।
जब से सामाजिक-संचार तंत्र पुनः स्थापित होने की स्थिति में आया हैं बिकाऊ संचार तंत्र कि लोगों के मन से पकड़ कमजोर पडी हैं। इसका मुख्य कारण यहीं हैं कि जो वास्तविक समाचार बिकाऊ तंत्र दबा जाता था देश के जिम्मेदार वर्ग ने सामाजिक-संचार तंत्र के माध्यम से लोगों तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया। इस तरह लोग जागृत भी हो रहे व औरों को भी जागृत कर रहे। सामाजिक-संचार तंत्र कि एसी भूमिका ने आज बिकाऊ संचार तंत्र को पूर्ण रूप से निरस्त कर दिया हैं। पत्रकार के रूप में छुपे कइ देशद्रोही व गद्दार भी आज सामाजिक-संचार तंत्र के माध्यम से नंगे हो चुके हैं। न्युज चेनल के रूप में खबरों का धंधा करने वालों को अब लोगों ने सामाजिक-संचार तंत्र के जरीये बुरी तरह लताड़ना शुरू कर दिया हैं। कइ एसी बनावटी नामी हस्तियाँ जिन्हे बिकाऊ तंत्र ने सिर आँखों चढा रखा था सामाजिक-संचार तंत्र के जरीये लोगों ने उन्हें सिधे जमीन पर ला पटका। आज हर नामी हस्ती कि वास्तविक हकीकत सामाजिक-संचार तंत्र पर खुली पडी हैं। सामाजिक-संचार तंत्र के माध्यम से लोगों ने प्रत्येक नामी हस्ती जो देशहित में चिंतित हैं, उन्हें अपना प्रतिसाद दिया हैं और जितने भी बहुरूपिये हैं जीन्हे बिकाऊ तंत्र ने जबरन चिंतित विभूतियों की श्रेणी में बैठाया था उन पर लोग जम कर अपनी भड़ास प्रकट कर रहे। इस तरह देशभक्तों का मनोबल लगातार मजबुत हो रहा व देशद्रोहीयों का मनोबल चकना चुर होता जा रहा, सामाजिक-संचार तंत्र पर इसकी झलक साफ नजर आती हैं। सामाजिक-संचार तंत्र के चलते आज बिकाऊ तंत्र कई मोर्चों पर विफल हो चुका हैं व लगातार उसकी विश्वसनीयता धुमील होती जा रहीं। यहीं कारण हैं कि बिकाऊ संचार तंत्र समय-समय पर सामाजिक-संचार तंत्र के दुष्प्रभाव पर बड़ी-बड़ी बहस कर लोगों में इसके प्रती भी भ्रम फैलाने की कोशिशें करता रहता हैं।
सामाजिक-संचार तंत्र व व्यावसायिक-संचार तंत्र मे फर्क
– व्यावसायिक-संचार तंत्र का मुख्य कर्ताधर्ता निर्धारित हैं व उनके ही हांथो संचालित हैं किंतु सामाजिक-संचार तंत्र लोगों के सहयोग द्वारा संचालित हैं
– व्यावसायिक-संचार तंत्र में खबरों को सुचारित कर पेश किया जाता हैं किंतु सामाजिक-संचार तंत्र में समाचार व विचार लोगों द्वारा असूचारु रूप से फैलती जाती हैं, यह मात्रा लोगों पर निर्धारित रहता हैं की वे किस विषय को महत्व दे
– व्यावसायिक-संचार तंत्र में खबरों पर नियंत्रण संभव हैं किंतु सामाजिक-संचार तंत्र में उतना आसान नहीं
– व्यावसायिक-संचार तंत्र पर पूँजी-पति व भ्रष्ट-तंत्र हावी हो सकते हैं किंतु सामाजिक-संचार तंत्र में जब तक लोगों का समर्थन ना मिले कोई हावी नहीं हो सकता
– अधिकतर पाया गया हैं कि व्यावसायिक-संचार तंत्र में समाचारों का समावेश व उनकी अनुक्रमीता उनके संचालन कर्ताओं के हित व अहित को ध्यान में रखकर निर्धारित कि जाती हैं किंतु सामाजिक-संचार तंत्र में समाचारों का महत्व लोगों की भावनाओं के आधार पर तय होता हैं
नवयुग कि सामाजिक-क्रांति
आज़ाद भारत में देश के युवाओं के सामने रोजगार व परिवारिक जरूरतों का जिम्मा कुछ इस कद्र थोपा गया कि लोग मात्र अपनी जरूरते ही पुरी करने में जुट गये। ना तो कृषि को बढ़ावा मिला ना ही अब तक जरूरत अनुसार रोजगार उपलब्ध किये गये। इस तरह जहाँ लोग खुद कि रोजमर्रा कि चुनौतियों को ही पुरा करने में लगे हो वहाँ किसे फुर्सत थी कि कोई देश के बारे में सोचते। और सोचते भी क्यूँ जब अधिकतर बिकाऊ संचार तंत्र देश कि वास्तविक मुद्दों को सामने लाने के बजाय बेमतलबी मुद्दों से जनता को भ्रमीत कर मूर्छित कर देने वाली धुन बजाता रहा हैं।
लोकतंत्र में लोगों कि जागृती से बड़ी सेवा और कोई हो ही नहीं सकती। यह भी कहाँ जा सकता हैं कि लोकतांत्रिक प्रणाली में हर छोटी-से-छोटी व बड़ी-से-बड़ी समस्या जनता कि लापरवाही का ही नतीजा होती हैं व जिनका हल भी जनता कि जागृती से निकल सकता हैं। सामाजिक-संचार तंत्र में निःसंदेह लोगों को जागृत करने कि क्षमता हैं और इसका असर भी व्यापक हैं। इसमें सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह भी हैं कि सामाजिक-संचार तंत्र का पहला असर हमारी आज कि अब तक भटक रहीं युवा पीढी पर हुवा। यह वास्तव में एक असाधारण घटना हैं जो कि देश के लिये बेहद जरूरी थी। आज कि युवा पीढी जहाँ सामाजिक-संचार तंत्र से अपने देश कि भुलाई गई गरिमा को पहचान रहीं हैं वहीं इसे जन-जन तक पहुँचाने में जुट गई हैं। यह लोकतंत्र कि बेहद अमूल्य सेवा हैं जिससे देशभक्ति के एक नये दौर का जन्म हुवा।
सामाजिक-संचार तंत्र ने लोगों के अतिरिक्त समय को उनकी ही जागृती में लगा दिया। जो जीतना जागृत हुवा उसने औरों को उतना जागृत किया। इस तरह जागृती कि जो चिंगारी सामाजिक-संचार तंत्र ने जगाई उसने सभी को, विशेषकर युवा पीढी को जागृत होने व जागृत करने का अनोखा अवसर दिया। इस आधुनिक दौर में देश के युवा सडक पर उतरकर आंदोलन करने के बजाये सामाजिक-संचार तंत्र पर आंदोलन छेड़ रहा और इसका असर कइ गुना गहरा और परिणामकारी सिद्ध हो रहा।
सामाजिक-संचार तंत्र के माध्यम से जागृत कइ देशभक्तों ने तो इसे अब अपने देनीक दिनचर्या का हिस्सा तक बना लीया हैं जिनकी कोशिश यहीं रहती हैं कि महत्वपूर्ण व देशहित कि खबरों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाये। इस तरह वे अपने अतिरीक्त समय को सामाजिक-संचार तंत्र पर व्यतीत करते हैं। इससे दोनों तरह के लाभ उन्हें मिलते हैं …
पहला – गंभीर विषय जिन्हे देश का संचार तंत्र या तो उठाता नहीं या बिकाऊ तंत्र उसे दबाने कि कोशिशें करता हैं, उनके प्रती वे जागरूक हो जाते हैं।
दूसरा – एसी खबरों व घटनाओं को वे उनसे जुड़े अन्य लोगों से साझा करते हैं ताकि वे अन्य लोग को भी सतर्क कर सके।
सामाजिक-संचार तंत्र ने अपने शुरूवाती दौर में ही कइ असाधारण व असंभव से लगने वाले परिवर्तनों को देशहित में अंजाम दिया हैं वह भी तब जब कि सामाजिक-संचार तंत्र से जुड़े लोगों कि संख्या आज भी बहोत ही आंशिक हैं। सामाजिक-संचार तंत्र के निरंतर बढ़ रहे विस्तार से देश का भविष्य एक मजबुत दिशा कि और बढ़ता हुवा नजर आने लगा हैं।
सामाजिक संचार-तंत्र के दुष्प्रभाव कि वास्तविकता
यदि कोई सामाजिक-संचार तंत्र का सामाजिक स्तर पर होने वाले प्रभावों का गहराई से अध्यन करे तो शत-प्रतिशत इसमे समाज के लिये कल्याणकारी गुण ही मिलेंगे। सामाजिक-संचार तंत्र का समाज पर किसी भी प्रकार का दुष्प्रभाव हो ही नहीं सकता। यदि कोई इसे दुष्प्रभावीत करने कि कोशिशें भी करे तो उसका चेहरा ही समाज के सामने आ जाता हैं व समाज उसके प्रती और सतर्क हो जाता हैं। इस तरह यह भी एक हितकारी प्रभाव बन जाता हैं। सामाजिक-संचार तंत्र ने जहाँ सुविचारों को फैलाता हैं वहीं दुर्विचार व असामाजिक सोच पर प्रतिकारक बनकर उन्हें शुद्धिकरण कि दिशा में मोड़ देता हैं।
यह बड़ा ही हास्य-पद होता हैं जब कुछ लोग मुख्यधारा संचार-तंत्र (MSM) में सामाजिक-संचार तंत्र के दुष्प्रभाव गिनावा कर आधी हकीक़त प्रस्तुत करते हैं। इसका सीधा मतलब तो यहीं निकाला जा सकता हैं कि सामाजिक-संचार तंत्र के विरूद्ध दुष्प्रचार करने वालों की मंशा ही विषैली हैं क्योंकि यह तो स्वीकारा ही नहीं जा सकता की वे अपने आकलन में चुक गये होंगे! अन्यथा वे संचार तंत्र के माध्यमों में कार्यरत होने के लायक ही ना होते।
यह भी एक हकीकत हैं की लोगों द्वारा संचालित संचार-तंत्र में अर्धसत्य व अनुमानित सूचनाओ की भरमार होती हैं लेकिन संचार-तंत्र से जुड़ा एक परिपक्व वर्ग भी हमेशा सक्रियता से भूमिका निभाता हैं जो ऐसी सूचनाओ को निरस्त करता हैं। इस तरह ऐसी सूचनाएं एक सीमा से बाहर नहीं फ़ैल पाती। इस तरहअसत्य असत्य व अनुमानित सूचनाओ का दोष भी सामाजिक संचार-तंत्र पर मढ़ना अप्रासंगिक ही होगा क्यों की सवाल तो उन पत्रकारों पर भी उठता रहा हैं जो पत्रकारिता का प्रमाण-पत्र लेने भावजूद केवल झूठ का प्रसार करते नजर आते हैं।
इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता हैं – जिस तरह एक वाहन के यदि उपयोग व दुरुपयोग पर चर्चा करे तो अंत में निष्कर्ष यहीं निकलेगा कि वाहन बेहद उपयोगी वस्तु हैं किंतु उसका इस्तमाल सावधानी से व संयमता से होना चाहिये। क्या कोई यह कहकर वाहन का विरोध कर सकता हैं कि यह तो मात्र प्रदुषण फैलाता हैं या इससे टकराकर लोग अपनी जान गवाह सकते हैं या फिर यह प्रकृति के लीये हानिकारक हैं? जबकी उपरोक्त सारे विरोध तथ्य आधारित हैं। ठिक इसी तरह सामाजिक-संचार तंत्र भी समाज के लिये पूर्णतया कल्याणकारी ही हैं। वाहन तो फिर भी प्रदुषण फैलाते हैं किंतु सामाजिक-संचार तंत्र में कोई प्रदुषण नहीं। यदि वाहन के दुर्घटना पर चालक को दोष दिया जाता हैं ना कि वाहन को तो सामाजिक-संचार तंत्र को किसी भी रूप में दोषी किस प्रकार ठहराया जा सकता हैं? दोषी तो सामाजिक-संचार तंत्र को इस्तमाल कर दुष्प्रभाव फैलाने वाला होगा। वाहन के अनगिनत दुष्प्रभाव होते हुए भी क्या हमे वाहन जैसी वस्तुओं का विरोध सुनने को मिलता हैं? यदि नहीं तो सामाजिक-संचार तंत्र का विरोध क्यों? विरोध मात्र इसीलिये क्योंकि इसके सामने बिकाऊ तंत्र को आज घुटनों के बल झुकना पड रहा! क्योंकि इसने साधारण लोगों की आवाज को बुलंद किया! क्योंकि सत्ता, संपत्ति व प्रतिष्ठा के ठेकेदारों कि नीव अब हिलने लगी!
सामाजिक संचार-तंत्र में मिलावट पर सतर्कता
जिस प्रकार भ्रष्टों व षडयंत्र-कर्ताओं ने मुख्यधारा से जुड़े संचार-तंत्र में सेंध लगा कर समाचारों का बाजार लगा रखा हैं उसी प्रकार अब इनकी सामाजिक संचार-तंत्र में भी मिलावट करने की कोशिश लगातार जारी हैं। इसके लिए इनके द्वारा तरह-तरह के हथकंडे अपनाने शुरू हो चुके हैं जिसके प्रति हमारी जागरूकता अनिवार्य हैं। सामाजिक संचार-तंत्र में भ्रष्ट-तंत्र सेंधमारी करने हेतू अपनी बातो के लिये समर्थन पैसों के जोर पर हासिल करता हैं। सोशियल मिडिया द्वारा उपलब्ध भुगतान-सेवा (Paid Service) अपना कर ऐसी श्रंखला खड़ी करते हैं जो उनके समर्थक बने, या उनके विचारों को पसंद या साझा कर सके। फिर भले ही ये समर्थक देश के नागरिक हो या देश के बाहर, अपने समर्थन में ये संख्या जोड़ने में सफल हो ही जाते हैं। इसी कड़ी में वे उनका अपना ऐसा समूह भी खड़ा करते हैं जो दिन-रात सामाजिक संचार-तंत्र पर भ्रष्ट तंत्र कि पैरोकारी में जुटा रहता हैं जिसके लिये ये लोग संचार-तंत्र में कई फर्जी खाते बनाकर संचालित करते हैं। ऐसे समूह को सुचारु रूप से वेतन-भत्ता भी भ्रष्ट तंत्र से मिलता रहता हैं। सामान्य जनमानस को भ्रमित करने के लिए कई बार फर्जी तस्वीर व बनावटी समाचारों से भी लोगों को भ्रमित तारने की कोशिश की जाती हैं। इनका उद्देश्य यही होता हैं कि वे अपने स्वामियों के विचारों के लिये समर्थन जुटाते रहे व साधारण लोगों की नजरों में कर्मठ कि तुलना में कामचोर को मिल रहा समर्थन उन्हें भ्रमित करता रहे। हमें चाहिए की हम सामाजिक संचार-तंत्र पर भी सतर्कता से सही-गलत का चुनाव करे व स्वयं से आकलन कर निर्णय ले ना की केवल समर्थित लोगो की संख्या को अपने निर्णय का आधार बनाए।