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मनोरंजन जगत पर सतर्कता

Posted on May 20, 2017May 13, 2023 By admin No Comments on मनोरंजन जगत पर सतर्कता

आधुनिक मनोरंजन का सच

जिस तरह युग और युगांतर बदलते गये, मानवीय जीवन में भी जीने के तौर तरीकों में भारी बदलाव आया। भारत का मूल सांस्कृतिक जिवन जहाँ “सादा जीवन, उच्च विचार” जैसे मंत्र कि और प्रेरित करता हैं वहीं चकाचौंध से भरे संस्कार रहित आधुनिक जीवन में वैचारिक क्षमता का स्तर लगातार घटता जा रहा।

भारत की सांस्कृतिक जीवनशैली जहाँ जीवन को मनोरंजन से भर देती हैं वहीं भटके हुए आधुनिक जिवन में आज लोग मनोरंजन में अपना जीवन ढूंढने में लगे हुए हैं। सांस्कृतिक जिवन से जहाँ प्रकृति व मानवीय जीवन का समन्वय स्थापित होता हैं, जिवन को सकुन से भर देता हैं वहीँ आधुनिकता से प्रभावित जीवन मात्र कीमती मनोरंजन के तरह-तरह के माध्यमों पर आधारित होता जा रहा हैं और लोगों को मुल्य चुकाकर भी मात्र चिंता व दुःख की प्राप्ति हो रही। इस तरह सांस्कृतिक मूल्यों से भरे जीवन में जहाँ मनोरंजन जिंदगी का हिस्सा बन सकता हैं वहीं आज लोगों ने जिंदगी को मनोरंजन का हिस्सा बना दिया हैं। अर्थात जब मनोरंजन मिला तब एक टुकड़ा जिंदगी का जी लीया। इसका परिणाम यह हैं की आधुनिकता कि चपेट में मनोरंजन के नये-नये माध्यमों कि जरुरत बढ़ती जा रहीं और ऐसी जरूरतों ने जिंदगी को टुकड़ों में बाँट कर रख दिया हैं।

बात यहीं तक सीमित रहती तब भी चल जाता लेकिन हमारे मनोरंजन के नये-नये तरीकों कि खोज ने राष्ट्र विरोधी व षडयंत्रकारी ताकतों को अपने पैर पसारने का अवसर दे कर हमारे अपनों कि मानसिकता में जहर घोल दिया। आज मनोरंजन का माध्यम कोई भी हो, षडयंत्रो का अंबार लगा हुवा हैं। जिसे हम मनोरंजन का श्रोत समझ रहे वहीं से समाज में धीमा जहर घोला जा रहा, प्रकृति से खिलवाड़ किया जा रहा और हम अनजान बने बैठे हैं।

आज वैचारिक दृष्टिकोण को त्याग हम कभी फिल्मी धुनों मे डूब जाते हैं, कभी फिल्मों व धारावाहिकों में खुद स्वयं को ढूंढते हैं या कभी वाटर या एम्युजमेंट पार्क में जिंदगी जीने कि कोशिशें करते हैं। आज इन सभी माध्यमों में विदेशियों व पूंजीपतियों ने भारी भरकम निवेश लगा कर अपने मन मुताबिक हमारे मानसिक पटल को पूर्णतया विपरित दिशा में परिवर्तित करने का प्रयत्न किया हैं।

फिल्म, धारावाहिक व विज्ञापन

आज के आधुनिक युग में मनोरंजन का एक मुख्य श्रोत फिल्में व धारावाहिक बन चुके हैं। यह एक साधारण सी बात नहीं क्यूँ कि इस माध्यम ने जीस तरह हमारे समाजिक परिवेश में अपनी पकड़ बनाई हैं वहीं समाज कि समझ को प्रभावित करने में मजबुती भी हासिल करली हैं। इस तरह इनमे दिखायें जाने वाली जीवनशैली कइ लोगों के जीवन को प्रभावित करती हैं। आज इन माध्यमों में कइ राष्ट्रविरोधी व असमाजिक ताकतों ने अपने पैर पसारकर समाज के रूख को विपरीत दिशा देने कि अनेकों साजिशों को अंजाम दिया हैं। इनके इन षडयंत्रो का परिणाम भी आज हमारे समाजिक परिवेश में साफ नजर आने लगा हैं…

— जिस तरह इन माध्यमों ने पाश्चात्य संस्कृती व विदेशी धर्म का प्रचार-प्रसार किया हैं लोगों कि जिवन शैली में भारत के सांस्कृतिक मूल्यों का अवमूल्यन बढ़ा हैं।

— आज इनके जरीये फैलने वाली अश्लीलता ने युवाओं को बुरी तरह जकडा हैं। कइ फिल्म व विज्ञापनो के माध्यमों से जहाँ एक तरफ अश्लीलता को बढ़ावा दिया जा रहा वहीं हमारे संस्कृती व अध्यात्मीक मूल्यों पर करारा अपघात किया जा रहा।

— जहाँ फिल्मों व धारावाहिकों ने स्त्रियों के मर्यादित जीवन को रूढी सोच का हिस्सा साबित कर दिया हैं वहीं विज्ञापनो ने स्त्री को मात्र एक उत्पाद विक्री का मुद्दा बनाने में कोई कसर ना छोडी।

— पारिवारिक साजिशों व सदस्यों के मन-मुटाव को मुद्दा बना कर चलने वाले धारावाहिकों ने सांस्कृतिक मूल्यों व आधुनिकता में जंग छेड़ने कि पुरी कोशिश कि हैं जिसने समाज के परिवारिक जीवन में असंतोष पैदा किया हैं।

— कइ धारावाहिक व फिल्में महिला सशक्तिकरण के नाम पर नारी जाती कि मानसिकता को युँ ढालने कि कोशिश में लगे हैं जिससे उन्हें पूर्ण समाज महिला वर्ग का दुश्मन नजर आये तथा भारतीय मर्यादा व संस्कार जैसे विषय उन्हें मात्र उनके पैरों कि बेडीया नजर आने लगे।

— इनके जरीये कहीं आतंकवादी व माफियाओं के प्रती हमदर्दी पैदा कि जा रहीं तो कहीं हमारे संघीय ढाँचो के प्रती अविश्वास व आक्रोश फैलाया जा रहा।

— कइ धारावाहिक व फिल्में एतिहासिक घटनाओ को तोड मरोड़ कर इतिहास के खलनायकों को भी नायक बना कर प्रस्तुत कर रहे जिनकी कइ पटकथाए तो विदेशों से लिख कर आती हैं।

फिल्म व टीवी जगत कि अधिकतर हरकतों को देखते हुए यह कहाँ जा सकता हैं कि आज ये जगत बच्चों व युवाओं में नैतिकता को प्रोत्साहित करने के बजाये उन्हें कहीं अधिक तरीकों से दिशाहीन करने में लगा हुवा हैं।

कलाकारों के प्रती सतर्कता

जीस तरह फिल्में व धारावाहिक समाज को प्रभावित करती हैं उसी तरह इनके कलाकार भी अपनी अदाकारी से लोगों के मानस पटल पर जगह बना लेते हैं। चलचित्र दुनियाँ कि आज स्थिती यहाँ तक प्रतीत होती हैं कि शुद्ध भारतीय नस्ल के कलाकार को वास्तविक स्थान मिलना लगभग असंभव सा बन चुका हैं। माफिया व आतंकियों के समर्थित कलाकारों ने अपना वर्चस्व बना लीया हैं।

— एसे बहुरूपिये कलाकार कला कि आड में देश कि सांस्कृतिक विरासत कि नीव खोदने कि भूमिका बखूबी निभाये जा रहे।

— हम भी जाने अनजाने में इन्हे अपने सिर आँखों बिठाते हैं और ये हमारे ही लुटाये पैसों से कहीं गरीब किसानों कि जमीनो पर अपने बंगले खड़े कर रहे तो कहीं फार्म हाउस बना रहे।

— एसे कलाकारों कि मोटी कमाई का एक बड़ा हिस्सा माफियाओं व आतंकियों को भी भेंट चढ रहा अर्थात हमारा लापरवाही से खर्च पैसा हमारे ही उपर बम या गोलियां बनकर बरस रहा। ऐसे ढेरों उदाहरण हमारे सामने आ चुके हैं व अनेको रूपों मे यह अभी भी जारी हैं।

— कइ कलाकार एसे भी हैं जिनका काला चेहरा उजागर भी हो चुका हैं किंतु फिर से दर्शकों के बीच अपनी छवी चमकाने हेतु खुद को समाज के हमदर्द के रूप में स्थापित करने के लिये करोडों दान कर बिकाऊ संचार तंत्र से स्वयं का प्रचार करवाते हैं।

— और कुछ कलाकार ऐसे भी हैं जो वैसे तो खुद को बड़ा समाज सुधारक बताते हैं लेकिन उन्हें समाज कि सारी कमियाँ मात्र हिंदु धर्म में नजर आती हैं व अन्य धार्मिक अंध-विश्वास व अन्याय के प्रति उनकी आँखे बंद हो जाया करती हैं।

एसे दोगले कलाकारों के प्रती सभी को जागृत हो कर इनका व इनकी कला का पूर्ण रूप से बहिष्कार करना ही होगा।

वाटरपार्क, एम्यूजमेंट पार्क व खेल स्टेशन

आज हर संपन्न परिवार अपने मनोरंजन के लिये ऐसे स्थलों का बढ़-चढ कर उपयोग कर रहा हैं। जहाँ ये स्थल स्फूर्ति भरे होते हैं वहीं मनोरंजन के भंडार के तौर पर भी माने जाते हैं। हम ऐसे स्थलों का उपयोग तो करते हैं लेकिन इनसे जुड़े कई पहलुओं को नजर अंदाज़ कर देते हैं।

— पारिवारिक मनोरंजन के गढ माने जाने वाले ये स्थल बेहद ख़र्चीला होने के कारण समाज के कुछ संपन्न परिवार कि पहुंच तक ही सीमित हैं तथा शेष के लिए कोई महत्व नहीं रखता।

— वाटर पार्क व एम्युजमेंट जैसे स्थल पकृती के कइ संसाधन जैसे भुमी, जल व विद्युत को भारी मात्रा में मात्र कुछ संपन्न लोगों के मनोरंजन के लिये लगा दिये जाते हैं जो कि पर्यावरण के लिये भी सहज नहीं हैं।

— ऐसे स्थलों को कई अ-नैतिक युगल जोड़ों ने अपनी अश्लीलता को खुलकर उभारने का अड्डा बना लीया हैं जहाँ बच्चों और बुजुर्गो के उपस्थिति की भी कोई चिंता नहीं कि जाती अत: इन्हे असामाजिक स्थल कहना किसी भी रूप में अनुचित नहीं होगा।

— कंप्यूटर-कृत खेल स्टेशन जैसे स्थलों कि लत बच्चों में हिंसक मानसिकता को प्रोत्साहित कर दिमागी तौर पर उनमें संयम, सहनशीलता और सोचने कि क्षमता घटाती हैं।

— इन स्थलों पर सादगी जैसे विचारों कि कोई जगह नहीं होती, यहाँ पर पहनावे से लेकर खान-पान प्रत्येक कर्म मात्र दिखावो से प्रेरित होते हैं जो अहंकार को बढ़ा सकता हैं।

— इन स्थलों से परिवार का बढ़ता लगाव पूर्णतया पाश्चात्य संस्कृती का प्रेरक हैं अत: जीसे जीतना इन स्थलों से लगाव होगा उसके लिये भारतीय संस्कृती को चाहकर भी समझना उतना ही कठीन होगा।

— एसे स्थलों को निजी तौर पर मनोरंजन के लिये भले ही कोई इस्तमाल करे किंतु इनका प्रचार समाज के निर्बल वर्ग के मन में अनावश्यक असंतोष को प्रेरित करता हैं। कम से कम हम निजी तौर पर एसे अप्राकृती, पर्यावरण विरोधी व असमाजिक स्थलों के प्रचार को रोक सकते हैं।

हर तरह के पहलुओं से इन स्थलों पर विचार करने के बाद निष्कर्ष यहीं निकलता हैं कि इन स्थलों से निजी सुखः कि स्वार्थपुर्ती भले ही करले किंतु एसे स्थलों से संस्कार व नैतिकता का पतन ही होना हैं तथा देश व समाज के लिये अनेकों रूप से अहितकारी मिलते हैं। अतः ऐसे स्थलों का प्रचलन हर प्रकार से सीमित करने की आवश्यकता हैं।

सांस्कृतिक जीवन-शैली

आज असामाजिक व षडयंत्रकारीयों को जो हमारी मानस पटल से खिलवाड़ करने का अवसर मिला हैं उसका मुख्य कारण हमारे जीवन में हमारे ही द्वारा अपनी ही संस्कृती का मिटाया गया प्रभाव हैं। हमने अपने ही संस्कृती को नजर अंदाज़ कर इनके षडयंत्रो को समझने कि क्षमता खत्म कर ली हैं।

सांस्कृतिक जीवन-शैली में जहाँ अध्यात्म, भक्ति व नैतिकता कि भरमार हैं वहीं मानवीय जीवन प्राप्ति के उद्देश्य को चरितार्थ करने कि अपार क्षमता हैं। सांस्कृतिक जीवनशैली हमें जीवन में परिवारिक सुखः व संतोष से परिचित करती हैं। मान व मर्यादा का मुल्य सिखाने वाली हमारी सांस्कृतिक जीवन पद्धति ना केवल मानवता बल्कि प्रकृति के प्रती भी सम्मान सिखाती हैं। जीसके जीवन में अध्यात्म, भक्ती, नेतिकता, मान व मर्यादा का ज्ञान हो, संगम हो, उसे अपने जीवन में मनोरंजन के विकल्पों को खोजने कि आवश्यकता ही नहीं पडती। उसके लिये धार्मिक साहित्य व कथाये भी मनोरंजन देतीं हैं, भक्ति-भजन भी मनोरंजन देते हैं, त्योहार व पर्व भी मनोरंजन देते हैं, गाय सेवा, तीर्थ यात्रा, दान-धर्म यहाँ तक कि संपूर्ण जीवन मनोरंजन देता हैं। ये एसा मनोरंजन हैं जो हमारे चरित्र को गिरने से बचा कर हमें चरित्रवान बनाता हैं, पशु-प्रकृति के प्रती संवेदनशील बनाता हैं और इनसे भी बढ़कर हमें धर्म व धरा के प्रती सचेत रखता हैं। हम भारतीय शैली के सांस्कृतिक जीवन को अपना कर अपने जिवन का वास्तविक सुखः प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह का जीवन मानवाता व प्रकृति के कल्याण को समर्पित हो जाता हैं और अपने अंत समय में आत्मतृप्ती को सुनिश्चित कर सकता हैं। हम जीवन को आधुनिक तरीकों से भले ही जिये किंतु अपने जीवन में सांस्कृतिक मूल्यों कि कमी नहीं होनी चाहिये अन्यथा जीवन नीरस, अज्ञानता व व्यर्थता को प्राप्त होगा।

हम अपना जीवन कितनी ही आधुनिकता से जीये किंतु यदि हम अपने जीवन में अपने मूल संस्कृती के ज्ञान से जुड़े रहेंगे तो इस तरह के कइ अनैतिक विचारों व षडयंत्रो से हम खुद को व परिवार को बचा सकते हैं।

यदि हमें स्वयं के इतिहास, मान्यता व संस्कृति का ज्ञान होगा तो…

— हम कलाक्षेत्र से उनको पहचान सकेंगे जो कला के रूप में हमारे इतिहास या संस्कृती का उपहास करते हो

— कोई कलाकार हमें यह समझाने कि कोशिश नहीं कर पायेगा की हम मुर्तिपुजा क्यों करे या गाय को चारा डाले या नहीं

— कोई कलाकार आतंकवादी के प्रती हममें हमदर्दी नहीं जगा पायेगा

— हम फिल्मों कि अश्लीलता को अपने जीवन का हिस्सा नहीं बनने देंगे

— हमें हमारे संस्कारों के प्रती कोई विचलित नहीं कर पायेगा

— विदेशी संस्कृति-सभ्यता जिनका ये प्रचार करते रहते हैं, हम उसके प्रती सतर्कता बरत सकते हैं

हमारी जागृती ही हमें सतर्क रख सकती हैं जिससे हम अपने परिवार, समाज व देश को सुरक्षित रखने में भूमिका निभा सकेंगे।

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